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मार्च, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

धुंध, सिगमंड फ्रायड और शाम का सूर्योदय :चौथा भाग

[पिछला भाग] "मणिभ! यहाँ से हमने स्पाइडर क्लब की शुरुआत की थी | याद है ? " अलग ने मुझे फ़्रोग-हिल के दूसरी तरफ की खाई दिखाई | ७०-८० फीट की खड़ी ढलान | असल में हम ऐसे ही नीलकंठ छात्रावास के पास जंगल में घूम रहे थे, जो अलग और मेरा रविवार का कार्यक्रम रहता है | उसी वक़्त हम इस चोटी के नीचे खड़े थे | नीचे से हमें पता भी नहीं चल रहा था कि हम फ़्रोग-हिल के नीचे खड़े हैं | चुनौती ? मैंने और अलग ने मन ही मन सोचा | अगले ही पल हम उस पर चढ़ने की कोशिश करने लगे | ये एक खतरनाक फैसला था क्योंकि खड़ी चढ़ाई होने के साथ साथ नीचे सीधी खड़ी छोटी छोटी नुकीली चट्टानें भी थी | जब हम शिखर पर पहुँचने वाले थे, वहां पर हम फंस गए | नीचे देखने की हिम्मत नहीं थी, उतरना तो दूर की बात थी | ऊपर चढ़ने के लिए कोई सहारा नहीं था | लेकिन ऊपर चढ़ना ही था, और कोई रास्ता नहीं था | नीचे से अलग लगातार पूछ रहा था, अबे रुक क्यों गया | आखिर कुछ सोचकर मैंने पूरे शरीर का संतुलन एक पाँव पर बनाया | शरीर को मोड़कर झुका लिया, और पंजों के बल उछल गया | अलग अक्सर मेरे  हाथों और आँखों के तालमेल की तारीफ़ करता है, आज वो कसौटी पर

धुंध, सिगमंड फ्रायड और शाम का सूर्योदय :तीसरा भाग

[पिछला भाग ] काफी खूबसूरत मौसम है | बारिश के बाद सब कुछ जैसे धुल सा जाता है | प्रकृति के कैनवास पर बने चित्र और भी ज्यादा अच्छे लगने लगते हैं | जमीन गीली और चिकने भरी हो गयी है , इसलिए हम दोनों संभल संभलकर कदम रख रहे हैं | "ये आकाश और रजत हमेशा लड़कियों की बात क्यों करते रहते हैं ?" अलग ने मुद्दा शुरू किया | अब इस मुद्दे पर काफी लम्बी चर्चा होने की सम्भावना है , क्यूंकि अलग और मैं बोलना बहुत पसंद करते हैं | "पता नहीं .. मुझे लगता है कि उनके पास और कोई विषय नहीं है |" मगर इस वक़्त मुझे इस बहस में बिलकुल कोई दिलचस्पी नहीं है | उसके सवालों से ज्यादा मेरा ध्यान अलकनंदा नदी और उसके किनारे बसे श्रीनगर की खूबसूरती पर है | इस दृश्य को देखकर मुझे हमेशा बचपन की वो सीनरी याद आती है | तीन पहाड़ बनाकर उनमे से किन्ही दो के बीच में से सर्पिलाकार नदी निकाल देते हैं , और नदी के दोनों तरफ घर, ढालदार छत वाले | बस तैयार हो गयी हमारी पेंटिंग , एक मिनट रास्ता नहीं बनाया है | कुछ ऐसा ही दृश्य जीवन देखकर लगता है कि सृष्टि के निर्माता की भी ये पहली पेंटिंग रही होगी |  पगडण्डी पर चलते

धुंध, सिगमंड फ्रायड और शाम का सूर्योदय :दूसरा भाग

[पिछला भाग ] "क्या सोच रहा है तू ?" अलग सिगरेट का धुंआ मेरे मुंह पर छोड़ता है | मैं जैसे सोते से जगा , उसके बारे में सोचते सोचते मैं काफी दूर किसी और पल में आ गया हूँ | "अभी तुझे देख रहा था काफी देर से , कुछ सोच रहा था तू ?" मैं हार गया था सो आखिर पूछना पड़ा | अलग अभी भी मुस्कुरा रहा था | मैं समझ गया था कि वो मुझे पढने की कोशिश लगातार कर रहा है | "कैंटीन चलेगा ?" मैं चौंका, फिर संयत हो गया | सोचा, इसीलिए तो वो अलग है | ये सब इतनी जल्दी हुआ कि खुद मुझे भी पता नहीं चला | "इस वक़्त ? बाहर सर्दी हो रही है बहुत |" "चल न यार !" उसे पता था कि उसके अनुरोध को मैं टाल नहीं पाऊंगा | असल में मैं खुद भी बाहर जाकर मौसम का मजा लेना चाहता था | मैं अपनी टोपी और जैकेट लेने के लिए रूम पर आया | अलग भी मेरे साथ साथ आ गया | आकाश और रजत रजाई के अन्दर घुसकर सोने की पिछले दो घंटे से कोशिश कर रहे थे , लेकिन कामयाब अभी तक नहीं हुए | "साले ! तूने ही तो कहा था उससे जाके कहने के लिए |" "और तू बोल आया ? कमीने !!!" "और क्या करता ? भाई ...