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जगदम्बा मटन शाप

ह र रोज सुबह छः बजे ही उसकी आँख खुल जाती । वह आँखों को मसलता, कांच के परे दुनिया देखकर वक़्त का अंदाजा लगता और जाने अनजाने यह उम्मीद भी करता कि वक़्त कुछ तो बदला हो, सात बजे हों, पांच बजे हों .. पर छः नहीं, लेकिन सिरहाने रखी घडी के कांटे उसकी दोनों आँखों के बीच चमकते रहते । वह डर जाता, एक ही वक़्त पर उठना बूढ़े होने की निशानी है । शायद वह बूढा हो रहा है, इस उम्र में ही । या शायद वह एक बुढ़ापा जी रहा है , जिसके बाद एक दूसरा बुढापा भी है । जमीन पर पाँव रखते हुए उसे बाबु की याद आती है । जब वह छोटा था तो हमेशा बिस्तर से उठने से पहले हाथ लगाकर जमीन को छूकर माथे पे लगाता । ऐसा वो किसी आदत से मजबूर होकर नहीं, पूरी आस्था से करता था । बाबू को देखकर , यह आदत उसके अन्दर भी धंस गयी थी । मन से किये हुए कुछ काम भी महज आदतें होती है । जब तक हमारे साथ होती हैं , हमें लगता ही नहीं कि यह एक आदत है । बस करते जाते हैं , बेवजह । जब वह दौर पीछे छूट जाता है तो पता चलता है कि यह भी कोई आदत थी । चलता हुआ समय आदमी को अपने बारे में कई ऐसे सच ब...

मोक्ष

इ न बीस सालों में वह अपनी बेटी से नहीं मिला था | वह नहीं चाहता था कि उसकी बेटी को पता चले कि उसका पिता कौन है | अपनी सारी हैवानियत को आज ताक पर रखकर वह अपनी बेटी को एक नजर देखना चाहता था | वह उसको क्या बताएगा कि वह कौन है, एकबारगी आंसुओं ने उसकी आँखों में घर बना लिया था | लेकिन वह कभी कमजोर नहीं पड़ा है, तो आज क्यूँ ? एक नादान लड़की जो महज पच्चीस बरस की होगी, भला उसकी बिसात क्या है ? क्या पूछ लेगी वह ? दुनिया की उसे समझ ही कितनी है ? और दिल ही दिल में वह इस बात की उम्मीद करता रहा कि वह वाकई में वैसा ही हो जैसा वो नहीं है | सलीन, कितना प्यारा नाम है, उसने सोचा | ऐसा नहीं है कि वह अपनी ही बेटी का नाम नहीं जानता था | बल्कि यह नाम उसे उसने ही दिया था, सलीन | लेकिन कभी इस बारे में उसने नहीं सोचा कि वह नाम इस कदर खूबसूरत हो सकता है | चीजें अपने आप में कितनी मिठास भरी हो सकती हैं, है न ? कोलोन डालते हुए उसने खुद को शीशे में देखा, वह पच्चीस का लग रहा था | उसे लग रहा था कि वह अपनी ही बेटी से छोटा हो गया है | दुनिया को अपने इशारों पर नचाने की कोशिश करने में उसने उम्र का एक बेहद जरुरी हिस्स...