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नवंबर, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नयी, पुरानी टिहरी

ज मनोत्री आज सुबह से कुछ अनमनी सी थी | सर्दियों की धूप वैसे भी मन को अन्यत्र कहीं ले जाती है | इतवार का दिन सारे लोग घर पर ही थे, छत पर धूप सेंकने के लिए | जेठ जेठानी, उनके बेटे-बहुएँ, पोता  प्रतीक भी अपनी छत पर घाम ताप रहे थे | ऐसा नहीं कि अलग छत पे हों, दोनों छत मिली हुई थी | लेकिन मनोमालिन्य ने दूरियों को एक छत से ज्यादा बढ़ा दिया था | सुधीर छुटियाँ लेकर आया था, बहू भी साथ आई थी, अमेरिका से | अमेरिका बोलने में जमनोत्री को मे पर काफी जोर डालना पड़ता था | सुधीर के पापा तो सुबह ही उठकर भजन गाने लगते हैं, अभी भी इस आदत को नहीं छोड़ा |  "बस भी करो, थोड़ा धीमे बोलो या चुपचाप सो जाओ, बच्चे सो रहे हैं |" जमनोत्री ने उलाहना दिया| सुधीर के पापा गाते रहे "इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकलें..." हारकर जमनोत्री को उठना पड़ा |  बहू अमेरिका से साड़ी लेकर आई थी |  "नहीं मम्मी जी, इसे पहनो... देखो, आप पर कितनी अच्छी लग रही है |"  जमनोत्री हतप्रभ थी- "उस देश में साड़ी मिलती है क्या ? साड़ी पहनती है तू वहां ?"  सुधीर नाश्ता करते हुए बोला - "अरे माँ

रामकथा - डेमोक्रेसी काण्ड

(अगर इस कहानी के पात्र काल्पनिक है, तो ये वास्तविकता नहीं, बहुत बड़ा षड्यंत्र है) कै केयी कोपभवन में थी, दशरथ आये, लाइट ऑन की, चेयर खींच के बैठ गए | लॉर्ड माउंटबेटन अभी भी नाराज बैठी थी, दशरथ की आँखों से हिन्दुस्तान की बेबसी झलक रही थी | "आपने दो वचन देने का वादा किया था, याद है न ?" अँगरेज़ सरकार अभी इतनी आसानी से माल-मत्ते वाला देश छोड़ने को तैयार न थी | "हाँ प्रिये!" नेहरूजी का डर सतह पर आ गया | "मेरा पहला वचन है कि अयोध्या में इस बार बड़ा बेटा गद्दी पर नहीं बैठेगा | देश में अब डेमोक्रसी होगी | हर कोई , हर किसी का शोषण नहीं करेगा | आम चुनाव से चुने गए ख़ास आदमियों को ही शोषण का हक होगा |" दशरथ नाराज तो बहुत हुए किन्तु माउंटबेटन के बेलन को स्मरण कर चुप रह गए| "अपना दूसरा वचन कहो महारानी कैपिटलिस्ट!" उद्धरण सुनकर कैकेयी मुस्कुराई | "सुमित्रा के पुत्रों को चुनाव लड़ने का हक नहीं होगा |" दशरथ ने दिल पर हाथ रखा किन्तु हृदयगति नहीं रुकी, "तुमने राम के लिए वनवास तो माँगा ही नहीं ?" माउंटबेटन  ने बड़े बेपरवाह भाव से जवाब दिया - &q

आछरियाँ

स्थान : पौड़ी  दिनांक : १-१-२००७  समय : १०:४५ पूर्वान्ह नए साल की नयी सुबह | पौड़ी की सर्दियाँ बहुत खूबसूरत होती हैं, और उससे भी ज्यादा खूबसूरत उस पहाड़ी कसबे की ओंस से भीगी सड़कें | सुबह उठते ही एकदम सामने चौखम्भा पर्वत दिखायी देता है | कौन रहता होगा वहां ? इंसान तो क्या ही पहुंचा होगा | क्या कोई देवता ? माँ कहती है कि आछरियाँ(परियाँ) ऐसी जगहों पर रहती हैं जहाँ तुम्हारा ध्यान  बार बार जाए, वो जगह इंसानों के लिए दुर्लभ हों | माँ कहती कि ऐसी जगहों पर नहीं जाना चाहिए, और अगर कुछ तुम्हें दिखायी भी दे तो अपनी आखों पे भरोसा मत करना | यह सब छल है, डरना मत बिलकुल भी | आछरियाँ किसी पर मुग्ध होती हैं, किसी की बातों पर, किसी की सच्चाई, अच्छाई पर तो उसे छल दिखाती हैं | फिर उसी छल से उसको अपने साथ अपने लोक में लेकर चली जाती हैं | गडरिये की कहानी, जिसे आछरियां लेके चली जाती हैं, किसी पहाड़ी पत्रिका में पढ़कर मैं थोडा सा सिहरा जरूर था, लेकिन दिल ही दिल में अच्छा भी लगा कि काश मुझे भी कोई लेके चला जाता | माँ एक कहानी और भी सुनाती है, क्या थी वो कहानी मुझे याद नहीं, बस एक वाक्य याद है कहानी में | क