डॉक्टर साहब गर्मियों की छुट्टियों में आते थे, नीचे शहर से। जैसे सभी लोग आते थे। और चले जाते थे, जब सब लोग चले जाते थे। बस एक दिन और रहकर।
जिंदगी एक अवसाद है | एक मन पर गहरा रखा हुआ दुःख, जो सिर्फ घाव करता जाता है | और जीना , जीना एक नश्तर है , डॉक्टर | ऐसा नहीं है, मेरी तरफ देखो , देखो मेरी तरफ | आँखें बंद मत करना | जीना , जीना है , जैसे मरना मरना | जब तक ये हो रहा है, इसे होने दो | इसे रोको मत | तो आप ऐसा क्यों नहीं समझ लेते कि अभी मौत हो रही है है , इसे भी होने दो | मुझे मत रोको | डॉक्टर , लोग कितने गरीब हैं, भूखे सो जाते हैं , भूखे मर जाते हैं | तुम्हें एक मेरी जान बचाने से क्या मिलेगा ? तुम जानना चाहते हो , मेरे दिल में उन लोगों के लिए कितनी हमदर्दी है ? जरा भी नहीं | मरने वाले को मैं खुद अपने हाथों से मार देना चाहता हूँ | जब कभी सामने सामने किसी को मरता हुआ देखता हूँ , तो बहुत आराम से उसकी मौत देखता हूँ | जैसे परदे पर कोई रूमानी सिनेमा चल रहा हो | मुझे मौत पसंद है , मरने की हद तक | फिर मैं क्यूँ डॉक्टर ! मुझे क्यों बचा रहे हो ? क्यूंकि , मैं खुद को बचा रहा हूँ , अपनी आत्मा का वो हिस्सा बचा रहा हूँ , जिसे मैंने खुद से कई साल पहले अलग कर लिया था | अपने बेटे को बचा रहा हूँ, जिसे मैं बचा नहीं पाया ...
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