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याद

डॉक्टर साहब गर्मियों की छुट्टियों में आते थे, नीचे शहर से। जैसे सभी लोग आते थे। और चले जाते थे, जब सब लोग चले जाते थे।  बस एक दिन और रहकर।  

टिप्पणियाँ

Smart Indian ने कहा…
सब्र का ऐसा इम्तिहान? इतने साल बाद आए और बस से उतरे भी नहीं। बैठे-बैठे ही वापस चले गए।

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Doors must be answered

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मुर्दा

जिंदगी एक अवसाद है | एक मन पर गहरा रखा हुआ दुःख, जो सिर्फ घाव करता जाता है | और जीना , जीना एक नश्तर है , डॉक्टर | ऐसा नहीं है, मेरी तरफ देखो , देखो मेरी तरफ | आँखें बंद मत करना | जीना , जीना है , जैसे मरना मरना | जब तक ये हो रहा है, इसे होने दो | इसे रोको मत | तो आप ऐसा क्यों नहीं समझ लेते कि अभी मौत हो रही है है , इसे भी होने दो | मुझे मत रोको | डॉक्टर , लोग कितने गरीब हैं, भूखे सो जाते हैं , भूखे मर जाते हैं | तुम्हें एक मेरी जान बचाने से क्या मिलेगा ? तुम जानना चाहते हो , मेरे दिल में उन लोगों के लिए कितनी हमदर्दी है ? जरा भी नहीं | मरने वाले को मैं खुद अपने हाथों से मार देना चाहता हूँ | जब कभी सामने सामने किसी को मरता हुआ देखता हूँ , तो बहुत आराम से उसकी मौत देखता हूँ | जैसे परदे पर कोई रूमानी सिनेमा चल रहा हो | मुझे मौत पसंद है , मरने की हद तक | फिर मैं क्यूँ डॉक्टर ! मुझे क्यों बचा रहे हो ? क्यूंकि , मैं खुद को बचा रहा हूँ , अपनी आत्मा का वो हिस्सा बचा रहा हूँ , जिसे मैंने खुद से कई साल पहले अलग कर लिया था | अपने बेटे को बचा रहा हूँ, जिसे मैं बचा नहीं पाया

फेरी वाला

ह म ख्वाब बेचते हैं | पता नहीं कितने सालों से, शायद जब से पैदा हुआ यही काम किया, ख्वाब बेचा |  दो आने का ख्वाब खरीदा, उसे किसी नुक्कड़ पे खालिश ख्वाब कह के किसी को बेच आये | जब कभी वो शख्स दुबारा मिला तो शिकायत करता - "जनाब पिछली बार का ख्वाब आपका अच्छा नहीं रहा |"  अब अपने ख़्वाबों की बुराई किसे बुरी नहीं लगती | तुरंत तमककर बोले, "आज अगर नींद के मोहल्ले में कोई कह दे कि मेरे ख़्वाबों में वो मजा नहीं है, जायेका नहीं है, या फिर तंदुरुस्ती नहीं है, तो सब छोड़ के काशी चला जाऊं |"  ख्वाब खरीदने वाला सहम जाता है | इधर नाचीज़ देखता है कि साहब शायद नाराज हो गए, कहीं अगली बार से हमसे ख्वाब खरीदना बंद न कर दें | तुरंत चेहरे का अंदाज बदल कर कहते हैं, "अरे साहब, बाप दादों की कमाई है ये ख्वाब, उनका खून लगा है इस ख्वाब में | अपना होता तो एक बार को सुन लेता, चूं-चां भी न करता | लेकिन खानदान की याद आते ही दिल मसोस कर रह जाता हूँ |"  साहब का बिगड़ा अंदाज फिर ठीक हो जाता है | दिल ही दिल में खुद को तस्दीक मिलती होगी कि हाँ अभी भी मैं ही साहब हूँ, क्या हुआ