(अगर इस कहानी के पात्र काल्पनिक है, तो ये वास्तविकता नहीं, बहुत बड़ा षड्यंत्र है)
कैकेयी कोपभवन में थी, दशरथ आये, लाइट ऑन की, चेयर खींच के बैठ गए | लॉर्ड माउंटबेटन अभी भी नाराज बैठी थी, दशरथ की आँखों से हिन्दुस्तान की बेबसी झलक रही थी | "आपने दो वचन देने का वादा किया था, याद है न ?" अँगरेज़ सरकार अभी इतनी आसानी से माल-मत्ते वाला देश छोड़ने को तैयार न थी |
"हाँ प्रिये!" नेहरूजी का डर सतह पर आ गया |
"मेरा पहला वचन है कि अयोध्या में इस बार बड़ा बेटा गद्दी पर नहीं बैठेगा | देश में अब डेमोक्रसी होगी | हर कोई , हर किसी का शोषण नहीं करेगा | आम चुनाव से चुने गए ख़ास आदमियों को ही शोषण का हक होगा |"
दशरथ नाराज तो बहुत हुए किन्तु माउंटबेटन के बेलन को स्मरण कर चुप रह गए| "अपना दूसरा वचन कहो महारानी कैपिटलिस्ट!"
उद्धरण सुनकर कैकेयी मुस्कुराई | "सुमित्रा के पुत्रों को चुनाव लड़ने का हक नहीं होगा |"
दशरथ ने दिल पर हाथ रखा किन्तु हृदयगति नहीं रुकी, "तुमने राम के लिए वनवास तो माँगा ही नहीं ?" माउंटबेटन ने बड़े बेपरवाह भाव से जवाब दिया - "अयोध्या में ही कौन सा राजमहल है अब |"
महामंत्री सुमंत हमेशा की तरह खादी की धोती, और एक चश्मा पहने खड़े थे | चश्मा उनके व्यक्तित्व से कुछ यों जुड़ गया था कि वे अब पर्दा गिराकर ही चश्मा उतारते थे | "राम और भरत के बीच में खाई और चौड़ी हो जाएगी |"
दशरथ चिंतित स्वर में बोले "धीरुभाई ने कैसे दोनों लौंडों को मेनेज किया था ?"
सुमंत चुप ही रहे, "सबको सन्मति दे भगवान |"
दशरथ को बीच बीच में सुमंत पे गुस्सा बहुत आता था, बेबात गाने लगता | अहिंसा परमोधर्म उन्हें भी उसी दिन से लगने लगा था जिस दिन अनजाने में वो किसी बेचारे श्रवण कुमार पर तीर चलाकर आये थे | इसके पश्चात उन्हें सुमंत ने समझाया कि बिना हिंसा के भी अभीष्ट पाया जा सकता है | कथा के अनुसार जब अटल जी से पूछा गया कि विप्रवर! बताइए बाबरी मस्जिद किसने तोड़ी | तो अटल जी ने धीर गंभीर शब्दों में आँखें बन्द कर पूरे दस मिनट तक स्वरचित 'काल के कपाल' सुनाई थी | फैसले का तो पता नहीं क्या हुआ, लेकिन जज साहब को शाम को अपने कपाल पर अमृतांजन बाम लगाना पड़ा | अगले दिन से उन्होंने प्रक्टिस छोड़ दी |
राम ने सुना तो दुखी हुए, लेकिन उन्हें पता था कि प्रजा में उन्होंने अपनी छवि बहुत अच्छी बना रखी थी | आज ही तो कुलवंती काकी के घर पे उन्होंने चाय पी | कुलवंती थी या धनवंती ... पता नहीं, कल न्यूजपेपर में पढ़ लेंगे यार | भरत प्रजा में जिन्ना की तरह थे, जिसे पब्लिक सिर्फ दूर से देखना पसंद करती थी | लक्ष्मण और शत्रुघ्न ने राम और भरत की पार्टी ज्वाइन कर ली | घर के गैलरी में क्रिकेट खेलते वक़्त होने वाली झड़पें अब अक्सर हिंसक रूप ले लेती | भरत आजकल लाहौर गए हुए थे, और समझौता एक्सप्रेस भी बन्द पड़ी थी, सो उन्हें वक़्त पर खबर नहीं मिल पायी | शत्रुघ्न आकस्मिक वेग से भरत के चुनाव प्रचार की ध्वज संभाले हुए थे, लेकिन राम मंझे हुए खिलाडी थे | आरोप प्रत्यारोप के दौर चलने लगे, "एक युवराज की तरह पाले गए राम क्या समझेंगे जनता का दर्द..." आजतक वालों के विशेष हवाले से खबर अयोध्या के कोने कोने में हलचल मचाने लगी |
अयोध्या वालों की सहानुभूति पाने के लिए राम ने नया दांव खेला | राम चित्रकूट में कुटिया बनाकर रहने लगे | यह मेड इन चाइना फोल्डेड कुटिया थी | जिसने भी सुना तुरंत ह्रदय उमड़कर आ गया, "अरे उन जैसा सुकुमार कैसे रहेगा वहां ?" सीता अपने सधे हुए हाथो से चित्रकारी करती, "कृपया राम को ही वोट दें, हमारा चुनाव चिन्ह है धनुष" लक्ष्मण रात को पम्पलेट कृषि भवन या बेसिक स्कूल की दीवारों पे चिपका आते | जब भरत वापस आये तो उन्होंने पहले राम को भगाने पे शत्रुघ्न की पीठ ठोंकी, फिर उसके बाद अचानक एक करारा थप्पड़ रसीद कर दिया | शत्रुघ्न को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन दरवाजे पे पत्रकारों की भीड़ को उमड़ते देखकर कुछ कुछ समझ आने लगा था | भरत ने प्रेस कांफ्रेंस में राम की बहुत तारीफ की, बड़े बड़े आंसू बहाए | "अबे यो तो दिखावा है |" एक ताऊ ने खैनी भरे मुँह से कहा, पीक कैमरे पर गिरी, वीडिओ ढक गया | लगा कि आकाशवाणी का नजीबाबाद केंद्र होगा | रात को भरत ने जब पुनर्प्रसारण देखा तो उन्होंने आजतक के ऑफिस में फ़ोन करके इसके कुपरिणाम भुगतने की धमकी भी दी |
भरत अपने साथ पूरे अयोध्या को लेकर आये | बाबा रामदेव भी साथ आये थे, क्योंकि आस्था चैनल के साथ कांट्रेक्ट का उल्लंघन वो नहीं कर सकते थे | इस जनसमूह में वो लोंडे लपाड़े ज्यादा थे जिन्हें मुफ्त का घूमना, खाना मिल रहा था | कॉलेज बंक करने का उनके पास आज पूरा बहाना था | लडकियाँ जरूर कुछ कम आई थी, जिसकी शिकायत ये लौंडे समुदाय शत्रुघ्न से बार बार कर रहे थे | शत्रुघ्न पहले से ही काफी परेशान थे, काफी चीजें लानी थी | श्रुतकीर्ति हमेशा उनके पास कोई न कोई लिस्ट पकड़ाती रहती है, जैसे एस एम कृष्णा पाकिस्तान को पकडाते हैं, "ये ये आतंकवादी ले आना यार, और हमारे हवाले कर देना जब अगली बार मिलोगे तो |"
कुरैशी हर बार भूल जाते, "अरे यार! तुम एक मिस्काल मार देते तो याद रहता | चलो कोई नि, अगली बार ले आऊंगा | कहीं भाग थोड़े ही रहे हैं आतंकवादी |"
कृष्णा कहते, "हुंह, जाओ मैं तुमसे बात नहीं करती |"
कुरैशी का दिल मोंम हो जाता, "ओबामा ममा, इसे समझाओ न ... देखो ये मुझसे बात नहीं कर रही |"
कृष्णा सास का सम्मान करने की पुरानी भारतीय परंपरा से हैं | चुपचाप चाइनीज़ हक्का नूडल्स में टोमाटो सौस लेते हुए खिलखिलाती हैं "उन्ह!!! तुम भी न... मैं तो मजाक कर रही थी |"
इन लौंडों के बिना ये कथा पूरी नहीं हो सकती | ये वे थे जो खुद को गरीबों का मसीहा कहते थे | हर मुद्दे पर इनकी कड़ी नज़र थी | चाहे वो सुषमा आंटी की लड़कियों का अफ़ेयर हो या नक्सलवाद ... चाहे मंदिर-मस्जिद विवाद हो या कश्मीर, या फिर दारु का ब्रांड, कभी कभी चिलम के दौर पर भी | ये ग़ज़ल पढ़ते, कहानी लिखते | रुचिका केस पे टेसू बहाके सामने सेठीजी की लड़की को इशारा करते "ऐ चलती क्या ?" आश्चर्यजनक रूप से इनका हर कार्य देश को गाली मारने पे ख़त्म होता | अगर कोई इन्हें रोकता तो ये कहते कि इस देश में देशभक्ति बड़ी सस्ती चीज़ है, पाकिस्तान को चार गाली दो और देशभक्त बन जाओ | देशविरोधी बयान देकर ये बड़े सस्ते में राममनोहर लोहिया, जेपी नारायण या बाबा नागार्जुन बन जाते हैं |
इस बीच राम चुनाव प्रचार में गहरे उतर गए थे | अखबार वाला जंगल के शुरू में ही अखबार डाल देता, जिसे लक्ष्मण को लाना पड़ता | इसमें राम को अपने बारे में कई दुष्प्रचार भी मिलते कि वे सिर्फ सवर्णों के ही हक की बात करते हैं | राम को सवर्ण शब्द से सुमंत काका का स्मरण हो आया | सुमंत काका, जिन्होंने अछूतों को सबसे पहले हरिजन कहा था | वैसे ऐसे लोगों की भी देश में कमी नहीं थी जो कहते कि सुमंत काका सवर्णों को परिजन कहते थे | खैर राम ने दलित वोट बैंक के बारे में सोचा, और प्रखर दलित नेता निषाद राज गुह से मिलने का कार्यक्रम बना लिया | लक्ष्मण से मिली जानकारी के अनुसार निषादराज गुह पहले चीन में भारत के राजदूत थे, आजकल बदहाली में राजदूत मोटरसाइकिल पे दूध बेचते हैं | लक्ष्मण की जानकारी से यह भी पता लगा कि वे काफी सौम्य, मृदु और इमोशनल टाइप बन्दे है | निषादराज प्रकाश राज के फैन हैं |
निषादराज वाकई काफी सुलझे हुए इंसान थे | वे इतने सुलझे हुए थे कि आकर राम के पास ज़मीन पर बैठ गए | लक्ष्मण ने तुरंत मेड इन चाइना फोल्डेड कुर्सी लगा दी | निषादराज ने संकोच किया तो राम ने उन्हें खुद अपने हाथों से 'स्पर्श' करके कुर्सी पर बिठा दिया, इस पोज़ की कई तसवीरें अलग अलग एंगल से ली गयी | निषादराज ने पूछा - "प्रभु! आप महाराष्ट्र न जाकर इस बियाबान में क्यूँ बनियान सुखा रहे है ?" जवाब में राम ने लक्ष्मण की ओर इशारा कर दिया, लक्ष्मण तुरंत पलटे ओर पीठ पर नील निशान दिखने लगे | लक्ष्मण की आँखों में वही खौफनाक मंजर उठा, "हम यू पी के हैं न | और वैसे भी, वहां लैंड स्कैम भी बहुत हो रहे हैं |" जाते वक़्त राम ने निषादराज को गले से लगाया | निषादराज के पास बयान करने को शब्द नहीं थे, उनकी आँखों से इस सम्मान पर झर झर से आंसू झरने लगे | उन्होंने केवट को वहीं पे खड़ा कर दिया कि जैसे ही राम बोलें चलो, नाव लेके सीधे पार करा देना | राम मन ही मन बड़े पछताए कि ये तो पूरी तरह से पार भेजने के ही मूड में है | ताजा जानकारी मिलने तक केवट नाव से अभी तक बाहर नहीं आया |
सुबह कपालभाती, अनुलोम विलोम करने के उपरांत भरत जनसमुदाय के साथ चित्रकूट की ओर चले | लक्ष्मण ने धनुष तान लिया, "भैया! भरत इधर की ही तरफ आ रहा है |" राम ने लक्ष्मण को तीर चलाने की नेट प्रक्टिस करने कहीं ओर भेज दिया | भरत आते ही राम के चरणों में गिर गए | आजतक, एन डी टी वी, इंडिया टी वी वाले लाइव फुटेज के लिए आपस में लड़ मरे | ये पानीपत का चतुर्थ युद्ध था | जिसे आप रोहिंटन मिस्त्री जी की बुक में पढ़ सकते हैं | भरत रो रोकर जी हलकान कर रहे थे | सीता बोर होने ही लगी थी कि भरत ने उनके भी चरण पकड़ लिए | ये सीता के लिए असल अग्निपरीक्षा की घडी थी कि चाहे जो हो जाए उन्हें इरिटेट नहीं होना है, नहीं तो पति का रहा सहा वोट बैंक भी चला जाएगा | राम भरत का ये ड्रामा जानते थे, लेकिन उन्हें भरत की इस पोलिटिकल सूझबूझ पर यकीन नहीं हो पा रहा था | राम ने जनसमुदाय को देखा, तीनों माताएं आई हुई थी .. नहीं नहीं वे भरत को इतना राजनैतिक ज्ञान नहीं दे सकते.. गुरु वशिष्ठ ... नहीं वे शिष्ट इंसान हैं...अरे वहां कौन खड़ा है, लाठी लिए.. और खद्दर पहने .. महामंत्री सुमंत ...तो ये सुमंत काका थे जिन्होंने पार्टी बदल ली थी | महामंत्री सुमंत राम से नजरें नहीं मिला पा रहे थे, जैसे कह रहे हों कि राम मुझे माफ़ कर दो | राम जानते थे कि बिना सुमंत के वो कुछ नहीं कर सकते | राम को अर्धनिद्रा में लगा कि वे आडवाणी हैं और सुमंत अटल बिहारी, तो लक्ष्मण गडकारी |
भरत अपने साथ निषादराज को भी लेके आये थे | भरत ने जब सुना कि निषादराज को राम ने गले लगाया तो उन्होंने दो कदम आगे जाकर निषादराज के चरण ही पकड़ लिए | "यो देख, फिर डिरामेबाज़" खैनी वाले ताऊ ने फिर उच्चारा | लौंडा समुदाय भी भरत की इस हरक़त के पोलिटिकल मोटिफ देखने लगा, और नारेबाजी करने लगा | जाने कहाँ से शत्रुघ्न दारु -मुर्गा लेकर आये, तब नारेबाजियां थमी | निषादराज अभी तक राम से हुई मुलाक़ात के सदमे में ही थे, अकस्मात आये इस झटके से उनकी ह्रदय गति रुकते रुकते बची | "आप मेरे लिए बड़े भाई के समान है |" भरत की आँखों से प्रेमाश्रु बह रहे थे | राम जानते थे कि भरत ने ये कहकर एक तीर से दो शिकार किये हैं | एक तो उन्होंने दलित और पिछड़ी जातियों का समर्थन हासिल किया, दूसरे उन्होंने राम को उनकी औकात याद दिला दी कि वो राम को निषादराज से ज्यादा ऊपर नहीं समझते | अभी तक 'डिरामा' देखने आये ताऊ की आँखें भी नम होने लगी थी | राम को लग गया कि अब भरत के कहने पर अगर अयोध्या चला गया तो भरत का चुनाव जीतना निश्चित है | राम ने अपने को कई बार कोसा भी कि जाने किस कुघड़ी में उन्होंने यहाँ का टूर का प्रोग्राम बनाया | भरत अपने आप ही प्रेस कांफेरेंस को संबोधित करने लगे कि राम वापस नहीं आना चाहते | ये कहते ही भरत दहाड़ें मारकर रोने लगे, लौंडा समुदाय राम को निष्ठुर होने पर ताने मार रहा था | भरत बोले, "प्रभु नहीं आना चाहते तो ना आओ, लेकिन हमें सहेजने के लिए अपनी चरण पादुकाएं दे दो |" राम जानते थे कि लन्दन से आये इन चप्पलों पर भरत की नजर काफी पहले से है, लक्ष्मण ने उन्हें आगाह भी किया था | सारे दांव उलटे पड़ रहे थे, और राम भाग्य के हाथों विवश हो रहे थे | भरत की दूरदर्शिता के किन्तु राम कायल भी हो रहे थे | भरत ने चप्पल भी ले ली, जनता की सहानुभूति भी, और राम को कहीं का भी नहीं छोड़ा | राम को लगा कि वे थोड़ी देर और रहे तो भरत कह उठेंगे कि भरत का काटा हुआ तो चप्पल भी नहीं पहन पाता | राम चुपचाप चप्पल देने ही वाले थे कि लक्ष्मण ने उनका हाथ रोक लिया, "प्रभु ये क्या कर रहे हैं आप ? ये चप्पल इसके सर पर मारिये और अयोध्या वापस चलिए |" राम ने एक नज़र लक्ष्मण को देखा, "लक्ष्मण खुद को पहचानो, तुम सुमित्रानंदन लक्ष्मण हो, वी वी एस लक्ष्मण नहीं कि पारी ख़त्म होने पे भी बल्ला भांजते रहो |"
कुछ दिनों बाद महामत्री सुमंत की किसी ने हत्या कर दी | जिस पर राम और भरत के समर्थक गाहे-बगाहे एक दूसरे का सर खोल देते हैं | किसने की, इसकी जांच आज तक जारी है | भरत ने १४ सालों तक राम की चप्पलों को राजगद्दी पर रखा, और राज्य किया | इस दौरान देश में इमरजेंसी लगा के रखी, और चुनाव नहीं हुए | इन १४ सालों में राम की चप्पलें वहीँ राजगद्दी पर रहीं | वैसे ही जैसे, मनमोहन जी सोनिया जी के हाई हील के सैंडलों को पी एम की कुर्सी पर रखकर देश चलाते हैं | बीच बीच में मनमोहन जी को जब कोई पसंद नहीं आता तो वहीँ से वो सैंडल फेंक के मारते हैं | निशाना इतना सधा हुआ होता है कि सुदूर देशों तक लगता है | राग रंग के नए नए मेले इस देश में लगते हैं, जिनमे पब्लिक को भी बड़ा मजा आता है | किसको चाहिए रामराज्य, राम आयेंगे तो पचास सवाल जवाब करेंगे, इससे तो बिना रामराज्य के भले | इस बीच दस्तावेज गायब हो गए कि राम कहाँ पैदा हुए थे | कोई कहता यहाँ, कोई कहता वहां | जिसकी जहाँ मर्ज़ी आई उसने वहां राम की मूर्ति लगायी, ये अलग बात थी कि कोई नहीं चाहता था कि मूर्ति के बजाये राम वहां पे साक्षात हों | लोग एक दूसरे को राम का नाम लेकर डराते धमकाते थे | समाचार लिखे जाने तक राम वापस नहीं आये हैं, लेखक ने उम्मीद भी छोड़ दी है |
टिप्पणियाँ
पर क्या है की कुछ घाल मेल तो नहीं हो गया....
पता नहीं, मुझे कुछ ऐसा लग रहा है.
2.चश्मा उनके व्यक्तित्व से कुछ यों जुड़ गया था कि वे अब पर्दा गिराकर ही चश्मा उतारते थे|
3.फैसले का तो पता नहीं क्या हुआ , लेकिन 4.जज साहब को शाम को अपने कपाल पर अमृतांजन बाम लगाना पड़ा
5.कुलवंती थी या धनवंती ... पता नहीं, कल न्यूजपेपर में पढ़ लेंगे यार
6.यह मेड इन चाइना फोल्डेड कुटिया थी
7.इस देश में देशभक्ति बड़ी सस्ती चीज़ है , पाकिस्तान को चार गाली दो और देशभक्त बन जाओ|
8.राम को अर्धनिद्रा में लगा कि वे आडवाणी हैं और सुमंत अटल बिहारी, तो लक्ष्मण गडकारी|
9.भरत कह उठेंगे कि भरत का काटा हुआ तो चप्पल भी नहीं पहन पाता
ऐसे एक से बढ़ कर एक चुटीले लेकिन सच्चे संवादों से भरी आपकी ये पोस्ट विलक्षण है...कमाल की है...ये पोस्ट मुझे डा. ज्ञान चतुर्वेदी जी के व्यंग उपन्यास "मरीचिका" की याद दिला गयी...अगर आपने ये उपन्यास अभी तक नहीं पढ़ा है तो फ़ौरन से पेश्तर इसे खरीद कर पढ़ें..आपके लेखन को भी उसे पढ़ कर नयी धार मिलेगी ये मुझे विशवास है...
इस कोटि के व्यंग लिखने वाले ब्लॉग जगत में उँगलियों पर गिने जाने वाले लोग ही हैं...आपका लेखन बहुत अलग और प्रभावशाली है...मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें...और लिखते रहें.
नीरज
ऐसा विलक्षण लेखन हम कहीं नहीं पढ़े थे.
हमारा जीवन धन्य हो गया.
SADAR
बाकी नीरज जी ने सब कह ही दिया है....
लिखते रहिये ...
अच्छी पोस्ट.. थोड़ी लंबी है...
मनोज खत्री
---
यूनिवर्सिटी का टीचर'स हॉस्टल -३
लिखो यार !
esp these lines....
पीक कैमरे पर गिरी, वीडिओ ढक गया, लगा कि आकाशवाणी का नजीबाबाद केंद्र होगा| रात को भरत ने जब पुनर्प्रसारण देखा तो उन्होंने आजतक के ऑफिस में फ़ोन करके इसके कुपरिणाम भुगतने की धमकी भी दी|..
i recommend u to read "Lapujhunna"..blog..
बैरंग पर तुम्हारी मंटोगोई पढी थी..
आप से बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
बाकी तो महारथियों ने कह ही दिया है।
केंकड़ा कथा में अपनी रुचि अनुसार आप से लिखने का अनुरोध कर के जा रहा हूँ। तिलस्म, फंतासी और साफगोई के साथ अपनी बात।
पर तीन महीने में मात्र पांच पोस्ट? हम तो ब्लॉग जिन्दा रखने को बीमार होते हुये भी इसका कई गुना ठेल दिये!
कुछ और उपजाओ बन्धु!
मैं तो और भी बहुतों को लपेटना चाहता हूँ बाबाजी, घालमेल जरूरी था, क्यूंकि काफी हद तक गलती सभी की है| कटघरे में जब पंद्रह लोग एक साथ खड़े होंगे , धक्कामुक्की तो होगी|
@ नीरज जी,
आप मेरे हमनाम हैं, तो पहली बधाई मुझे..
ज्ञान जी कि मरीचिका मैं जरूर खरीदूंगा.. बस अभी उसे पढना नहीं चाहता| व्यंग्य में मौलिकता बेहद जरूरी तत्व है|
@ शिव जी,
आपका ईमेल आई डी नहीं है हमारे पास, कोई बात नहीं, वैसे व्यंग्य लेखन मैं आपका ब्लॉग आदर्श है| हम नए लोगों के सीखने के लिए बहुत है उसमे|
@ संजय,
धन्यवाद, आप बने रहिये, व्यंग्य भी लिखता रहूँगा|
लम्बी चीजें पढने वाले लोग भी मिल जाते है जी, अब देखो न आपने भी पूरा पढ़ लिया| व्यंग्य तो वैसे भी किश्तों में लिखना मुश्किल है| पहले भाग में जब व्यंग्य की भूमिका बनती है, लोग उसी को देखके दूसरा नहीं देखेंगे :)
मेरा मानना है कि लेखन , खासकर कहानियां, आइना है और टिप्पणियां पाठक का अक्स|
@ मनोज,
लम्बी पोस्ट लिखने की आदत पड़ गयी है यार , दरअसल कहानियां लम्बी छोटी के हिसाब से सोची ही नहीं जाती| तीन चार हिस्सों में बांटू तो पाठक पे अपनी चोइस थोपना होगा, जहाँ पे पाठक का मन करे, वहां पे रुक जाए, बाकी अगले दिन पढ़ ले|
@ जयकृष्ण राय तुषार
आभार
@ anjule shyam जी,
आप हौंसला बढ़ाते रहिये, बस| उम्मीद है कि मेरी आने वाली कहानियां आपको नाउम्मीद नहीं करेंगी|
@सागर ,
अपनी हर पोस्ट में मैं कोशिश करते हूँ कि अपने को ही ना दोहराऊं, औरों को तो खैर नहीं ही दोहराना है|
बेतकल्लुफ अंदाज लिखते वक़्त भी मजा देता है :) बहुत शुक्रिया कि आपको अच्छा लगा|
लपूझन्ना तो भगवान् इतनी बार पढ़ा है, कई बार ऑफिस में मुंह पर हाथ रखके हँसा हूँ, आंसू निकल आये हंसी रोकने की कोशिश करने में, लेकिन लपूझन्ना व्यंग्य नहीं है, हास्य है| व्यंग्य के साथ दिक्कत ये है कि ये बोरिंग भी हो सकता है|
@ Patali-The-Village जी,
आप पढ़ती है मेरा लिखा हुआ , उसके लिए बहुत शुक्रिया|
@ Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) ,
मत याद दिलाइये पंकज जी, मंटो को भूलने की कोशिशें जारी हैं|
@ गिरिजेश राव,
आप अगर मुझसे कुछ सीखते हैं तो ये मेरे लिए गर्व का विषय है|
@ Arvind Mishra
बहुत बहुत शुक्रिया सर, झीनी उम्मीद है कि आप यूँ ही पढ़ते रहेंगे|
@ ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandey
ज्ञान जी, इस दमदार उपस्थिति को नजरअंदाज न किया जाए अब , क्यूंकि उम्र और अनुभव इतना नहीं है कि बिना बड़ों के सहारे के चल सकूँ| इसलिए राय दीजिये, टिप्पणी दीजिये, या धिक्कार, पर कुछ न कुछ जरूर दीजिये|
महाराज़ की जय हो,
कुलटा को बनवास कब भेजोगे ?
अपना परिचय देना तो भूल ही गया ।
अपुन होता एक चिरकालीन कैरेक्टर i.e.
मॉयसेल्फ़ धोबी ऑफ़ दिस ब्लॉगजगत !
जब भी किसी का कुछ धोना-धुलाना हो,
हाज़िर रहेगा ब्लॉगजगत का यह धोबी,
सैल्यूट।
आपकी बहुत इज्ज़त करता हूँ , क्योंकि आप नए ब्लोगरों को प्रोत्साहन देते हैं | बहुत अच्छे पाठक भी है |
@कुश ,
बहुत धन्यवाद , अभी राग दरबारी पढ़ा | मरीचिका भी खरीदता हूँ कुछ दिन में |
@ डॉ. अमर कुमार,
आपको परिचय देने की जरूरत पड़ गयी महाराज ? ये तो कुछ ऐसा है जैसे उड़न तश्तरी जी आज पहली पोस्ट लिखें अपनी | बाकी आप जल्दी जल्दी पूर्ण स्वस्थ हो जाएँ जरा धोने धुलने का खेल जोरों से हो |
@ मो सम कौन ? जी,
आपका सैल्यूट सर-आँखों पर :)