"अभी न, मैं तुम्हारे लिए कहानी का टाइटल सोच रही थी " "अच्छा ? क्या सोचा ?" "अभी मैं आ रही थी न, स्टैंड पे... तो वही कुत्ता था वहाँ पे परसों वाला, रो रहा था... उसे देख के मुझे टाइटल सूझी" "कुत्ते को देख के टाइटल ?" मैं हँसने लगा, वो भी हँसने लगी | "अरे सुनो न स्टुपिड! तुम मुझे भुला दोगे नहीं तो |" "ओके बाबा, बोलो |" "हाँ तो टाइटल है, हीरो की कहानी, परिंदे की जुबानी |" "वाह क्या टाइटल है !" मैंने उपहास किया | "अच्छा है न ?" "हाँ , लेकिन कुत्ते से तुम्हें ये टाइटल क्यों सूझा ? कुत्ता तो पूरे टाइटल में कहीं नहीं है |" मैंने अपनी हँसी को किसी तरह रोका हुआ था | "पता नहीं" वो थोड़ा उदास हो गयी, "मैंने बहुत कोशिश किया, लेकिन उसके लिए जगह ही नहीं बनी टाइटल में, मे बी दैट लिल डॉग इंस्पायर्ड मी |" "हाँ, शायद | तुम इसका नाम हीरो की कहानी, कुत्ते की जुबानी भी तो रख सकते थे |" "तुमको मेरा टाइटल पसंद आया न ?" उसने उम्मीद से पूछा | "मैं परिंदों का पसीना रख ल...