सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

'wow! wonderful story'


तुम वो बेनामी हो, जो मेरी कहानियाँ समझ में नहीं आने पे भी कहती हो, 'wow! wonderful story' | तुम सही में नहीं जानती हो कि तुमने मेरी कहानियों का अंत किस हद तक 'wonderful' कर दिया है | मेरे जन्मदिन पर तुमने पहली बार लिखने की कोशिश की, मुझे बर्थडे सरप्राइज़ देने के लिए | वैसे तुमने एक दिन पहले कहा कि हम अब बात नहीं करेंगे | मुझे इतना पता है कि तुम मुझसे कुछ न कुछ कहे बिना नहीं रह सकती, इसलिए मन ही मन हँसते हुए मैंने हाँ कह दी | रोज़, सुबह 8 बजकर 30 मिनट पे तुम्हारा कॉल आता है, और तुम पूरे पंद्रह मिनट परेशान करती हो | आज तुम्हारा कॉल नहीं आया, और तुम मुझे 11 बजे तक परेशान करती रही | सबसे पहले विश करने की ये होड़ तुम्हारी, आखिर किससे थी | मुझे तो वैसे भी कोई उम्मीद नहीं थी कि तुम्हें कोई प्रतिद्वंदी मिलेगा | अपने पूरे परिवार को जगाके मुझे बर्थडे विश करवाना, तुम्हारे पापा जरूर तुम्हारे लक्षण देखके 'हाथ से निकल गयी लड़की' कह रहे होंगे | दूर दूर रहते हैं, कैम में देखते ही, एक दूसरे को देखकर जी भर के हँसते हैं | मेरी पिछली तीन गर्ल फ्रेंड्स के एवज तीन बॉय फ्रेंड्स बता के 'हिसाब किताब बराबर' कहना, क्या मेरा खुद का पागलपन कम था जो तुम भी ?


The birds were singing but not melodious as now...
The poets were reciting poem but not meaningful as now...
Rainbow was always colourful but not bright as now...
Breeze were blowing but couldn't touch the heart as like now...
Flowers were fruitful, but blossom was not as now...
The world was beautiful but not as beautiful as  now....
It’s you who changed every view of my life...
It’s your Birthday,The day when God sent you to my life...
to give a beautiful meaning of my life...
HAPPY BIRTHDAY TO YOU...

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

रामकथा - डेमोक्रेसी काण्ड

(अगर इस कहानी के पात्र काल्पनिक है, तो ये वास्तविकता नहीं, बहुत बड़ा षड्यंत्र है) कै केयी कोपभवन में थी, दशरथ आये, लाइट ऑन की, चेयर खींच के बैठ गए | लॉर्ड माउंटबेटन अभी भी नाराज बैठी थी, दशरथ की आँखों से हिन्दुस्तान की बेबसी झलक रही थी | "आपने दो वचन देने का वादा किया था, याद है न ?" अँगरेज़ सरकार अभी इतनी आसानी से माल-मत्ते वाला देश छोड़ने को तैयार न थी | "हाँ प्रिये!" नेहरूजी का डर सतह पर आ गया | "मेरा पहला वचन है कि अयोध्या में इस बार बड़ा बेटा गद्दी पर नहीं बैठेगा | देश में अब डेमोक्रसी होगी | हर कोई , हर किसी का शोषण नहीं करेगा | आम चुनाव से चुने गए ख़ास आदमियों को ही शोषण का हक होगा |" दशरथ नाराज तो बहुत हुए किन्तु माउंटबेटन के बेलन को स्मरण कर चुप रह गए| "अपना दूसरा वचन कहो महारानी कैपिटलिस्ट!" उद्धरण सुनकर कैकेयी मुस्कुराई | "सुमित्रा के पुत्रों को चुनाव लड़ने का हक नहीं होगा |" दशरथ ने दिल पर हाथ रखा किन्तु हृदयगति नहीं रुकी, "तुमने राम के लिए वनवास तो माँगा ही नहीं ?" माउंटबेटन  ने बड़े बेपरवाह भाव से जवाब दिया - ...

नयी, पुरानी टिहरी

ज मनोत्री आज सुबह से कुछ अनमनी सी थी | सर्दियों की धूप वैसे भी मन को अन्यत्र कहीं ले जाती है | इतवार का दिन सारे लोग घर पर ही थे, छत पर धूप सेंकने के लिए | जेठ जेठानी, उनके बेटे-बहुएँ, पोता  प्रतीक भी अपनी छत पर घाम ताप रहे थे | ऐसा नहीं कि अलग छत पे हों, दोनों छत मिली हुई थी | लेकिन मनोमालिन्य ने दूरियों को एक छत से ज्यादा बढ़ा दिया था | सुधीर छुटियाँ लेकर आया था, बहू भी साथ आई थी, अमेरिका से | अमेरिका बोलने में जमनोत्री को मे पर काफी जोर डालना पड़ता था | सुधीर के पापा तो सुबह ही उठकर भजन गाने लगते हैं, अभी भी इस आदत को नहीं छोड़ा |  "बस भी करो, थोड़ा धीमे बोलो या चुपचाप सो जाओ, बच्चे सो रहे हैं |" जमनोत्री ने उलाहना दिया| सुधीर के पापा गाते रहे "इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकलें..." हारकर जमनोत्री को उठना पड़ा |  बहू अमेरिका से साड़ी लेकर आई थी |  "नहीं मम्मी जी, इसे पहनो... देखो, आप पर कितनी अच्छी लग रही है |"  जमनोत्री हतप्रभ थी- "उस देश में साड़ी मिलती है क्या ? साड़ी पहनती है तू वहां ?"  सुधीर नाश्ता करते हुए बोला - "अरे माँ...

हीरो की कहानी, परिंदे की जुबानी

"अभी न, मैं तुम्हारे लिए कहानी का टाइटल सोच रही थी " "अच्छा ? क्या सोचा ?" "अभी मैं आ रही थी न, स्टैंड पे... तो वही कुत्ता था वहाँ पे परसों वाला, रो रहा था... उसे देख के मुझे टाइटल सूझी" "कुत्ते को देख के टाइटल ?" मैं हँसने लगा, वो भी हँसने लगी | "अरे सुनो न स्टुपिड! तुम मुझे भुला दोगे नहीं तो |" "ओके बाबा, बोलो |" "हाँ तो टाइटल है, हीरो की कहानी, परिंदे की जुबानी |" "वाह क्या टाइटल है !" मैंने उपहास किया | "अच्छा है न ?" "हाँ , लेकिन कुत्ते से तुम्हें ये टाइटल क्यों सूझा ? कुत्ता तो पूरे टाइटल में कहीं नहीं है |" मैंने अपनी हँसी को किसी तरह रोका हुआ था | "पता नहीं" वो थोड़ा उदास हो गयी, "मैंने बहुत कोशिश किया, लेकिन उसके लिए जगह ही नहीं बनी टाइटल में, मे बी दैट लिल डॉग इंस्पायर्ड मी |" "हाँ, शायद | तुम इसका नाम हीरो की कहानी, कुत्ते की जुबानी भी तो रख सकते थे |" "तुमको मेरा टाइटल पसंद आया न ?" उसने उम्मीद से पूछा | "मैं परिंदों का पसीना रख ल...