काफी खूबसूरत मौसम है | बारिश के बाद सब कुछ जैसे धुल सा जाता है | प्रकृति के कैनवास पर बने चित्र और भी ज्यादा अच्छे लगने लगते हैं | जमीन गीली और चिकने भरी हो गयी है , इसलिए हम दोनों संभल संभलकर कदम रख रहे हैं |
"ये आकाश और रजत हमेशा लड़कियों की बात क्यों करते रहते हैं ?" अलग ने मुद्दा शुरू किया | अब इस मुद्दे पर काफी लम्बी चर्चा होने की सम्भावना है , क्यूंकि अलग और मैं बोलना बहुत पसंद करते हैं |
"पता नहीं .. मुझे लगता है कि उनके पास और कोई विषय नहीं है |" मगर इस वक़्त मुझे इस बहस में बिलकुल कोई दिलचस्पी नहीं है | उसके सवालों से ज्यादा मेरा ध्यान अलकनंदा नदी और उसके किनारे बसे श्रीनगर की खूबसूरती पर है | इस दृश्य को देखकर मुझे हमेशा बचपन की वो सीनरी याद आती है | तीन पहाड़ बनाकर उनमे से किन्ही दो के बीच में से सर्पिलाकार नदी निकाल देते हैं , और नदी के दोनों तरफ घर, ढालदार छत वाले | बस तैयार हो गयी हमारी पेंटिंग , एक मिनट रास्ता नहीं बनाया है | कुछ ऐसा ही दृश्य जीवन देखकर लगता है कि सृष्टि के निर्माता की भी ये पहली पेंटिंग रही होगी |
पगडण्डी पर चलते -चलते और अलग के फ़िज़ूल सवालों का जवाब देते हुए हम कैंटीन पहुंचे | कैंटीन में ख़ामोशी और अँधेरा पसरा है , कोई और मौसम होता तो ये जगह गुलज़ार होती | कुछ दिनों में वैसे भी जब सूरज देवता दर्शन देंगे तो ... आउच...हमेशा की तरह अन्दर घुसते हुए मेरा सर दरवाजे से टकरा गया | यार , हम पहाड़ी लोग दरवाजे इतने छोटे क्यूँ बनाते हैं | अन्दर काफी अँधेरा था , होस्टल में भी लाईट नहीं आ रही थी | कैंटीन वाला हमारे होस्टल से ही बिजली चोरी करता है |
"अंकल, दो चाय...और सिगरेट है ?" फिर मेरी तरफ देखकर बोला, "कुछ खायेगा ?"
"बन-आमलेट मंगा ले |"
"ठीक है, अंकल ...दो बन-आमलेट "
अखबार पढना मेरा दूसरा सबसे प्रिय शगल है , बेशक लोगों को पढना पहला | कहीं पर भी, कोई भी अखबार हो, मैं उसे चाटने लगता हूँ | यहाँ पर भी मेरा नज़रों में हलके अँधेरे में चमकता दैनिक जागरण आ गया है |
"चल बाहर बैठते हैं , यहाँ बहुत अँधेरा है |"
अलग के इस प्रस्ताव पर मैं सहमत हो गया | वैसे ये प्रस्ताव नहीं था, सो असहमति की न गुंजाइश थी , न वजह |
मैं अखबार अपने चेहरे के आगे रखकर पढ़ने लगा | अलग को पढ़कर मैं इतना तो समझ ही गया था कि वो मुझसे कोई न कोई सवाल जरूर पूछेगा | और बेशक वो ऐसा सवाल होगा, जिसका जवाब मेरे पास नहीं होगा | और मैं अभी दिमाग लगाने की मनोदशा में नहीं था | ख़ास तौर पर उसके ऐसे सवालों का कि 'कुछ बता मेरे बारे में' |
"अच्छा मणिभ, तेरा उसका क्या चल रहा है ?" उसका सवाल मेरी अपेक्षा से ज्यादा मुश्किल था | मुझे कुछ समझ नहीं आया कि बात कहाँ से शुरू करूँ | मैंने आँखों के आगे से अखबार हटाया , और मिस्टर बीन जैसा चेहरा बनाकर कहा |
"किसका ?.. वैदेही चौहान का ? कल चलते हैं अलकनंदा छात्रावास... सुबह देखते हैं, पसंद आ गयी तो शाम को प्रपोज़..."
अलग हँस पड़ा | पहले दिन देखकर उसी दिन प्रपोज़ करने का मेरा किस्सा आज भी हर आने वाले नए बच्चों में सुनाया जाता है |
"तुझे पता है मैं किसके बारे में बात कर रहा हूँ , श्रद्धा के साथ ..."
मुझे पता है कि वो श्रद्धा के बारे में ही पूछ रहा था | लेकिन उसका नाम सुनते ही जैसे किसी ने कोई तार सा छेड़ दिया हो | अभी बाकी तारों को भी गुंजायमान करता रहेगा | मेरे जेहन में एक नहीं कई श्रद्धाएँ उतर आयीं | मुस्कुराती, नाराज होती, खिलखिलाती सरसों पे धूप जैसी, या किसी पहाड़ी नदी जैसी भागती हुई , पहाड़ जैसी उदास एक कोने में बैठी , कभी मुझसे हाथ छुड़ाकर भागती श्रद्धा, कभी मेरा हाथ थामती , अल्हड दार्शनिक ...
अचानक जैसे कहीं कुछ टूटा ... कैंटीन वाले अंकल का लड़का गोपी कांच के टुकड़े बटोर रहा था | और मुझे नजर आई एक और श्रद्धा, 'मैंने तुमसे कभी नहीं कहा कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ |'
'तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो , पर सिर्फ एक दोस्त '
'मैं तुमसे कोई वादा नहीं कर सकती '
'मणिभ...हाथ छोडो मेरा ...'
श्रद्धा का चेहरा घुलने लगा है और अलग का चेहरा धुंध से जैसे बाहर आने लगा, "कुछ नहीं यार , कुछ चार एक महीने से हमने आपस में बात नहीं की है |"
"ये तो तू बता चुका है, उसके बाद कुछ नहीं हुआ ?" उसने बिकुल खारिज करने वाले भाव से पूछा , मुझे अन्दर ही अन्दर काफी गुस्सा आ गया था , जब ये सब मैं बता चुका हूँ तो इसे क्या जरुरत है बार बार पूछने की | खैर वो अभी भी काफी संयत लग रहा था, जैसे संवाद अभी पूरा नहीं हुआ हो , "और तेरा जन्मदिन भी तो आया था बीच में , क्या उसने फ़ोन किया ?"
"नहीं " अखबार हाथ में रखने का भी कोई फायेदा नहीं था, मेरा डर बरक्स खड़ा था | मैं वार्तालाप के इस नए अध्याय से खिन्न हो चला था | पर साथ ही साथ एक अजीब सी शान्ति भी महसूस कर रहा था | फ्रायड के सिद्धांतों में मैंने कहीं पढ़ा था कि आदमी उसी चीज से अधिकतम शान्ति महसूस कर सकता है जिस पर उसका मन सबसे अधिक विचलित होता है | फ्रायड को मैं अपना गुरु मानता हूँ, उसी की किताबें पढ़कर मैंने सोच के कीड़े को अपने दिमाग में विकसित किया है | मुझे पता है कि फ्रायड की बातें काफी लोगों को समाज विधर्मी लगती हैं , और कई बार तो ऐसे तथ्य लिखने वाले लेखक के आचार-विचार, व्यव्हार, यहाँ तक कि चरित्र पर भी संदेह किया जाता है | फ्रायड की कुछ सोचों से मैं आज तक सहमति नहीं जता पाया हूँ , खासतौर पर interpretation of dreams को मैं अपने तर्क या विवाद में शामिल नहीं करता |
"तूने किया था उसके जन्मदिन पर... "
"अरे यार!!! उसका जन्मदिन अगस्त में आता है , उसके बाद ही तो ..."
"यार , वैसे एक बात कहूँ , मैंने तुझे कभी उससे बात करते हुए देखा नहीं | इसलिए ज्यादा कुछ कह नहीं सकता, तेरा काल्पनिक किरदार तो नहीं है न वो ?" अलग हंसने लगा |
"वो छात्रावास में रहने वाली लड़की नहीं है | घरेलू लड़की है ... तीन- पांच मिनट से ज्यादा हमारी बात नहीं होती | होती वो अलकनंदा में , या मैं होता आकाश , रजत की तरह तो करता दिन भर फ़ोन और सारे छात्रावास में फ़ोन लेकर घूमता रहता " मैं और तीखा बनना चाहता था लेकिन, "हाँ, एक बार बात की थी उससे एक घंटे तक | यार, जब मैं उससे सिर्फ तीन मिनट तक बात करता था तो आराम से फोन काट देता था , उस दिन जब घर गया वहां से एक घंटे तक बात की तो मेरा फ़ोन रखने का मन ही नहीं किया | पता नहीं , ऐसा लगा जैसे कि बस फ़ोन रख दिया तो ... ऐसा क्यों हुआ ?"
"मुझे क्या पता भाई ? होता होगा कुछ ... फ्रायड ने बताया नहीं तुझे ?" तीखा होने की बारी अलग की थी |
अंकल चाय और बन-आमलेट रखकर चले गए | सिगरेट का एक पैकेट भी अलग को थमा गए | उसी वक़्त ही मेरे दिमाग में ये ख़याल आया कि अंकल हर रोज़ कैंटीन में आये लड़कों के किस्से सुना करते होंगे | शायद हर किस्से में लड़की का शुमार जरूर होता होगा | तो क्या सोचते होंगे अंकल हमारे बारे में ? ये कोई नैतिक शिक्षा का सवाल नहीं था , बहरहाल हमसे ज्यादा अंकल कैंटीन बनने से बचे घर के दूसरे हिस्से के बारे में सोचते होंगे , जहाँ उनकी तीन बेटियां उस उम्र में प्रवेश कर रही थी , जिस उम्र में उन्हें हम जैसे लड़कों से बचाना जरूरी था | अंकल हम लोगों के पापा की उम्र के हैं , तो अंत में पापा क्या सोचेंगे अगर उन्हें पता चला कि किसी तरह से इक्कीस पर पहुंचे उनके बेटे को किसी तरह उन्नीस पर पहुंची उनके दोस्त की बेटी से प्यार हो गया | मुझे लगता है कि सबसे पहले उनकी सोच यही होगी कि सुपुत्र को सही राह कैसे लाया जाए | पता नहीं हम लोग प्यार को इतना प्रतिबंधित क्यों मानते हैं ? इसके बारे में बात नहीं कर सकते, बड़ों की राय नहीं ले सकते | जबकि फ्रायड का एक सिद्धांत यह भी है कि अगर तुम अपने बच्चे को फव्वारे के पास जाने से मना करते हो तो वह जरूर जाएगा कि आखिर इसमें ऐसा क्या है | ओह.. नहीं , फिर से फ्रायड ... मुझे श्रद्धा पर ध्यान लगाना है |
"अलग तू जानता है कि श्रद्धा ही वो लड़की है , या मैं कहूँ कि वो इंसान है जिसके बारे में मैं लगातार चौबीस घंटे सोच सकता हूँ, बिना रुके सारी रात बोल सकता हूँ |"
"और जिसके साथ तू सारी जिंदगी बिना रोये गुज़ार सकता है | यही न ?"
"पता नहीं... हाँ... शायद यही |"
अलग अब सिगरेट का धुंआ मेरे मुंह पर फेंकने लगा था | मुझे यह पसंद नहीं है |
"तू बर्बाद हो गया यार... पता नहीं तुम लोगों को प्यार कैसे हो जाता है |"
अलग की बात सुनकर भी मैंने अपना आप नहीं खोया पर बात को कूटनीतिक विनम्रता से सँभालने के लिए मैंने छात्रावास वापस चलने का प्रस्ताव रख दिया |
"तूने चाय ख़तम कर ली ?" अलग आश्चर्य से मुझे देखने लगा, "अच्छा , चल फ़्रोग-हिल चलते हैं |"
"अबे यार , कौन जाएगा उतनी दूर ?" हालांकि मुझे पता है कि कि इस बहाने से कोई फायेदा नहीं होने वाला , फ़्रोग-हिल कुछ ही दूरी पर है , और हम दोनों के लिए तो बिलकुल पास | फ़्रोग-हिल दरअसल एक बड़ी खाई के शीर्ष का कुछ बाहर को निकला हुआ हिस्सा है , मेंढक की आकर की पहाड़ी जिस पर माता का छोटा सा मंदिर है | पहाड़ी के शिखर से श्रीनगर और साफ़ और खूबसूरत दीखता है |
हम दोनों पगडण्डी के साथ कदमताल करते हुए चलने लगे | पगडण्डी इतनी छोटी है कि दोनों एकसाथ नहीं चल सकते | अलग आगे आगे और मैं पीछे पीछे |
"इतनी ठण्ड में तुझे घूमने की क्या सूझी ?" मैं चिल्लाया |
"बस ऐसे ही , मजा नहीं आ रहा क्या ? "
"साले... मर रहा हूँ ठण्ड से ... अगर कल भी यही हाल रहा तो बर्फ गिर जायेगी | है न ?"
"नहीं बे ! बर्फ ऐसे नहीं गिरती और आज वैसे भी बारिश हो गयी है |"
उसकी बातों से असहमत होने के लिए मेरे पास कोई तर्क नहीं है . क्योंकि ऋषिकेश में बर्फ नहीं गिरती | और... फ्रायड ने भी इस बारे में कुछ नहीं कहा |
"अच्छा , इस बार वैलेंटाइन डे पर तुम दोनों ने क्या सोचा है ?"
"पागल है क्या? वैलेंटाइन डे , अगर घरवालों को पता चल गया तो मेरा शहीद दिवस और निर्वाण दिवस उसी दिन हो जायेगा |"
"कभी मनाया भी नहीं ?"
"नहीं यार , उस दिन घरवालों की पूरी नजर रहती है | मजाक जरूर करते हैं, वैलेंटाइन डे को लेकर... पर वो कुछ ऐसा है जैसे अच्छा व्यव्हार करने वाला इंस्पेक्टर ..." मैं हँसा , "हाँ , वैसे उनकी नजरें बचा के कुछ दिन पहले ही हम एक दूसरे को उपहार दे देते हैं |"
"क्या उपहार ?"
"मुझे वैभव का ख्याल आ गया | उसके कमरे में काफी सारे उपहार रखे हुए थे , जो वो ख़ुशी मिश्रित गर्व से बताता था कि उसे मिनी ने दिए है | एक दिल के आकार का कांच का टुकड़ा , जिस पर लिखा I love you अलग अलग कोण पर रखने पर अलग रंगों से चमकता है , प्रिज्म जैसा | एक शेर का छोटा सा रोंयेदार खिलौना | एक महंगा सा ब्रेसलेट , जिसे वो हमेशा अपने हाथ पर पहनता है | वो मुझे समझाता , "अबे तू श्रद्धा को ये, इस तरह के गिफ्ट दिया कर | यार, ये सस्ता भी है , और उसे अच्छा भी लगेगा | तू कैसे गिफ्ट देता है उसे ?"
मैं बताने लगा, "डायरी , पेन , सीडीज़ , एक बार अमृता प्रीतम की 'कोरे कागज़', तुषार रहेजा की anything for you, ma'am जिसे उसने एक हफ्ते बाद ही लौटा दिया था कि इंग्लिश बहुत मुश्किल है |"
"यार, ये चीजें लड़कियों को समझ नहीं आती हैं , इन चीजों के साथ ..."
"यार वैभव , मुझे लगता है कि जो लड़की मुझसे प्यार करती है , उसने मेरे रुझान , मेरी दिलचस्पियों को देखकर समझकर ही मुझसे प्यार किया होगा | अगर कोई मुझसे प्यार करता है तो उसे मेरी रूचि के बारे में पता होना ही चाहिए |"
"क्या उपहार देता है तू ?" अलग ने सवाल दोहराया |
"जो भी उसे पसंद हो |" मैंने अलग को टाल दिया, मेरे दिमाग में कोई बिम्ब ही नहीं बना , अब इतनी सारी चीजें होती है , छोटी छोटी ... सब याद थोड़े ही रह पाएंगी |
हम फ़्रोग-हिल तक पहुँच गए | अब अलग के दिमाग की खुराफातों की अगली किश्त मुझे पता थी |
"चल सीढ़ियों से जाने के बजाये पत्थर पर चढ़कर चलते हैं , MI2 वाले स्टाइल में "
"यार अलग , वो सब कब का छोड़ चुका हूँ, स्पाइडर क्लब वाले काम ... और वैसे भी ठण्ड इतनी हो रही है कि हाथ बाहर निकालने का मन नहीं कर रहा |"
पर हर बार की तरह इस बार भी मैं उसके अनुरोध और अपनी रोमांचक प्रवृत्ति को नहीं रोक पाया | कच्ची पहाड़ियों पर या किसी घासरहित चट्टान पर बिना सहारे के चढ़ने का एक सबसे जरुरी नियम यह होता है कि आप जितना तेज चलेंगे , उतने ही सुरक्षित रहेंगे | इसके लिए आँखें बेहद तेज होनी चाहिए , तुम्हें पता चल जाए कि अगले पांच कदम तुम कहाँ कहाँ पर रख सकते हो | मेरी आँखों और हाथों के बीच के तालमेल , हलके और चपल शरीर की वजह से मैं उससे पहले ही ऊपर पहुँच गया हूँ | चट्टानों को कसकर पकड़ने की वजह से हाथों में दर्द होने लगा है, मैं हाथों को फूंक मारकर गर्म करने लगा |
मंदिर के अन्दर पहुंचकर मैंने थोड़ी देर हाथ जोड़े, सर झुकाया | लेकिन अलग मंदिर के बगल से होते हुए मंदिर के पीछे पहुँच गया | उसके मुताबिक वो अपने आप को कभी किसी से कमजोर नहीं मान सकता | मैं भी मंदिर के पीछे चला गया | यहाँ से श्रीनगर बिलकुल पास लगने लगता है , ऐसा लगता है मानों सीढ़ीदार खेतों से उतरते जाओ तो दस मिनट में पहुंचा जा सकता है | हम चोटी से पाँव लटकाए बैठ गए |
(अगली कड़ी अंतिम कड़ी समझिये, बस जल्द ही पोस्ट करता हूँ |)
टिप्पणियाँ
hamari bhi mani jai........
sadar.........
अगली कड़ी की प्रतीक्षा है...
रंगपर्व होली पर असीम शुभकामनायें !
अनिता भारती