"मणिभ! यहाँ से हमने स्पाइडर क्लब की शुरुआत की थी | याद है ? " अलग ने मुझे फ़्रोग-हिल के दूसरी तरफ की खाई दिखाई | ७०-८० फीट की खड़ी ढलान | असल में हम ऐसे ही नीलकंठ छात्रावास के पास जंगल में घूम रहे थे, जो अलग और मेरा रविवार का कार्यक्रम रहता है | उसी वक़्त हम इस चोटी के नीचे खड़े थे | नीचे से हमें पता भी नहीं चल रहा था कि हम फ़्रोग-हिल के नीचे खड़े हैं | चुनौती ? मैंने और अलग ने मन ही मन सोचा | अगले ही पल हम उस पर चढ़ने की कोशिश करने लगे | ये एक खतरनाक फैसला था क्योंकि खड़ी चढ़ाई होने के साथ साथ नीचे सीधी खड़ी छोटी छोटी नुकीली चट्टानें भी थी | जब हम शिखर पर पहुँचने वाले थे, वहां पर हम फंस गए | नीचे देखने की हिम्मत नहीं थी, उतरना तो दूर की बात थी | ऊपर चढ़ने के लिए कोई सहारा नहीं था | लेकिन ऊपर चढ़ना ही था, और कोई रास्ता नहीं था | नीचे से अलग लगातार पूछ रहा था, अबे रुक क्यों गया | आखिर कुछ सोचकर मैंने पूरे शरीर का संतुलन एक पाँव पर बनाया | शरीर को मोड़कर झुका लिया, और पंजों के बल उछल गया | अलग अक्सर मेरे हाथों और आँखों के तालमेल की तारीफ़ करता है, आज वो कसौटी पर खरे उतरने के लिए बेचैन थे | मेरी निगाहें दांयी तरफ उगे घास के एक गुच्छे पर टिकी थी | अगर थोड़ी देर के लिए मुझे सहारा मिल जाए ... मुझे यकीन था कि मैं इसे पकड़ लूँ तो ... अगले ही पल वो घास मेरे हाथ में थी और मैं और घास दोनों हवा में उखड़ चुके थे | घास के हाथ में आते ही मैंने दुबारा हवा में छलांग लगा दी | घास जड़ से उखड़ी, नीचे जा गिरी थी, लेकिन मेरी उँगलियाँ मिटटी की भुरभुरी चट्टान के अन्दर धंस चुकी थी | और मैं सही सलामत ऊपर पहुँच गया | ऊपर पहुँचते ही मैं ठिठक गया, मैं फ़्रोग-हिल पर खड़ा था | ये एक तरह का सरप्राइज़ पैकेज था | खैर अलग के चिल्लाने से मुझे उसकी याद आई | जल्दी से उसे ऊपर निकाला |
"हमने नहीं, मैंने... तू सिर्फ एक सदस्य है |"
"ओ भाई ... मैं भी था यार फाउन्डर में |"
"ओके, ओके भाई .. मैं तो ऐसे ही ..."
"अच्छा मणिभ, अगर उस दिन तू नीचे गिर जाता और मर जाता तो सबसे ज्यादा अफ़सोस किस बात का होता ?"
"ऐसा हो ही नहीं सकता साले ..." मेरी पीठ में लेकिन सिहरन दौड़ गयी |
"फिर भी ..." अलग मुझे जबरदस्ती धक्का सा देता रहा | अलग की इन्हीं हरक़तों और ऐसे सवालों की वजह से छात्रावास में ज्यादातर लोग उससे बचके निकलने की कोशिश करते थे |
"कुंवारा मरने का |" मैंने हँसते हुए जवाब दिया | मेरी हंसी में उसका कोई साथ नहीं था |
"मणिभ, आज तुझे एक बात बताता हूँ ... वो बात जो मैं आज तक अपने आप से भी छुपाता हूँ |"
"क्या ?" मैं आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगा | उसके इस तरह घुमाफिराकर बात करने की उम्मीद मैं नहीं करता हूँ | बात वो सीधी ही करता था, जब भी मुहावरेदार या आकर्षक बनाने की कोशिश करता, जगहंसाई करवाता | यहाँ पर मैं यह इकबाले जुर्म करता हूँ कि उसका मजाक उड़ाने में सबसे आगे मैं रहता हूँ | उसका चेहरा मेरे आश्चर्य से किंचित भी प्रभावित नहीं हुआ |
"मैं बचपन से साफ़ नहीं बोल पाता हूँ | इस बात को लेकर मेरा तब भी मजाक उड़ाया जाता था , और आज भी ..." अलग मेरी तरफ देखने लगा | उसकी नज़रों से बचने के लिए मैं सामने चौखम्भा देखने की कोशिश में लगा हूँ, लेकिन धुंध आँखों पर छाई हुई है | मेरे न चाहने के बावजूद देखने का दायरा सीमित ही रहा | अलग मेरे उहापोह को तवज्जो न देकर जारी रहा, "मैं जब ग्यारहवीं में था तब एक लड़की हमारे विद्यालय में आई थी | दोस्त बनने बनाने का फैशन चल रहा था | मैं उससे दोस्ती करना चाहता था पर उसने मना कर दिया | उसके बाद मैंने बारहवीं बोर्ड में पांचवां स्थान हासिल किया और आई आई टी प्री निकाल लिया, तब वो मेरे पास आई ... दोस्ती करने ... उस वक़्त मैंने उसे ठुकरा दिया |"
"साली... " मैंने अपनी घृणा प्रदर्शित की |
"तुम इसे सही मान सकते हो जो कि मैं भी मानता हूँ, लेकिन मेरा दिल और मेरा भविष्य इसे सिरे से नकार देता है | उसके अगले साले मैं आई आई टी मेंस तो छोड़ो प्री भी नहीं निकाल पाया | कोई और स्टेट कॉलेज भी नहीं ... इन दोनों चीजों का कोई रिश्ता नहीं , लेकिन ऐसा उसी साल क्यों हुआ ? मैं आज भी उस वक़्त को कोसता हूँ जब मैंने इनकार करने का फैसला लिया था | तुम कह सकते हो कि ये मेरा वहम है ? लेकिन फिर ये वहम भी क्यों ? मैं आज भी सोचता हूँ कि क्या क्या हो सकता था | लेकिन फिर से भावनाओं को दबाकर जीने लगता हूँ | मैं चाहे कितना भी खुश हो लूँ, लेकिन एक अधूरापन सा लगता है |"
वो चुप हो गया | हमारे बीच खामोशी फिर से पसर गयी |
"जिंदगी हर वक़्त तुम्हारे हिसाब से नहीं चलती मणिभ | दूसरों को पढने की कोशिश में तुम खुद को पढ़ना भूल गए हो | अगर मनोविज्ञान में तुम्हारी इतनी ही रूचि है तो तुम्हें तुमसे बेहतर विषय नहीं मिलेगा |"
एक पल के लिए मुझे लगा अलग कोई पुरानी भड़ास निकाल रहा है | लेकिन उसकी बात काटने का मुझे साहस नहीं हुआ |
"तुझे याद है, वैभव के कमरे में जब वैभव तुझे अपने उपहार दिखा रहा था ... तो मैं भी वहां पे था | क्या कहा था तूने ? श्रद्धा को पता होना चाहिए कि तेरी अभिरुचि के विषय क्या हैं ? क्या तुझे पता है कि श्रद्धा की अभिरुचि के विषय क्या हैं ?"
अलग जेब से सिगरेट निकाल चुका था |
"श्रद्धा ने तुझे डायरी दी है न ?" अलग ने सिगरेट होंठों के बीच दबा ली |
"तुझे कैसे पता ?" मुझे आश्चर्य हुआ |
मेरे सवाल को नजरअंदाज करते हुए वो आगे बोला , "श्रद्धा को पता है कि तुझे लिखना पसंद है बिना ये सोचे कि उसे खुद लिखना पसंद है या नहीं |"
मुझसे कुछ कहते न बना , मुझे चुप देखकर अलग ने बातों के सिलसिले को खुद ही आगे बढाया , "तुम्हें उससे जवाब क्यों चाहिए ? क्यों तुमको ऐसा लगता है कि दुनिया में कोई किसी के लिए जवाबदेह है, जबकि तुम खुद किसी के लिए नहीं ?"
मन में सवालों के झंझावात से उलझा हुआ था मैं, एक ही चीज के कई पहलू थे | हर एक चेहरा , एक नई परत थी | मेरा असली चेहरा क्या है ? अलग ... क्या तुम मैं हो ?
"तुझे पता है दर्द सहन किया जा सकता है , उसमें दुःख नहीं होता | दुःख तब होता है , जब लोग आपके दर्द को दर्द मानने से इनकार कर देते हैं | आज तू श्रद्धा से प्यार करता है | कल अगर तुम दोनों एक साथ नहीं होते हो ..." अलग ने पत्थर दूर हवा में फेंक दिया, "...तो तुम इस दर्द को झेल लोगे, मुझे पता है | पर तुम्हें तब बहुत दुःख होगा जब लोग तुम्हें समझाने लगेंगे कि ये सब होता रहता है | तब तुम्हारा दिल जानता है कि ये सब होता नहीं रहता, बल्कि एक छोटी सी बात, एक छोटा सा कदम, तुम्हारी एक छोटी सी कोशिश से सब बदल सकता था | जब जीवन तुम्हारा प्रारब्ध लिख रहा था, तब तुम जीवन लिख सकते थे | लेकिन मेरे भाई यही बात तुम पूरी दुनिया के सामने नहीं स्वीकार कर पाओगे | तुम सिर्फ जीते जाओगे , बिना ये सोचे कि कुछ बदल सकता था |" पत्थर नीचे घाटी की धुंध में नजर आना बंद हो गया था |
"कितना खतरनाक है ऐसा जीना, जिसमे एक तिलमिलाहट, एक बेचैनी हमेशा तुम्हारे हमकदम होगी , जिसकी कैफियत का अंदाजा तुम्हे नहीं होगा | है न ?"
अलग की सिगरेट का काफी लम्बा इंतज़ार अपने मुकाम पर पहुँच गया था , लाइटर उसे जलाने के लिए निकाला जा चुका था |
"तुम लोगों को प्यार कैसे हो जाता है यार ? " अलग ने सिगरेट का धुंआ मेरे मुंह पर छोड़ते हुए कहा , "और हो जाता है , तो इतनी आसानी से छोड़ कैसे देते हो यार ?"
अलग मंदिर के आगे खड़ा था , मैं सही सही नहीं जानता कि उसने क्या कहा | लेकिन सिगरेट को उगलियों के बीच दबाकर उसने मूर्ती की तरफ कुछ इशारा सा किया | मैं मंदिर के पीछे खड़ा नीचे खाई की तरफ देख रहा था | ०...१...३...# ...#...#...४३..#...#...# रिंग रिंग...रिंग रिंग ... मुझे अपने धड़कते दिल की आवाज सुनाई दे रही थी |
"हेलो ..."
अपनी धडकनों को संयत करने में मुझे थोडा वक़्त लग गया |
"हेलो रितु | श्रद्धा है क्या वहां पर ?" फोन रितु ने उठाया था, अक्सर किसी और के फोन उठाने पर मैं फोन काट देता हूँ | लेकिन इस बार ऐसा नहीं किया |
दीदी तुम्हारा फोन आया है , गुहार लगाती रितु की आवाज मेरे कानों में गूँज रही थी | कुछ देर का इंतज़ार काफी बड़ा लग रहा था | क्या होगा ? अगर वो मुझसे बात नहीं करना चाहेगी तो ? करेगी भी तो ? क्या कहूँगा मैं ? क्या जवाब दूंगा मैं अगर ?
"हेलो " श्रद्धा की आवाज ने मुझे भिगो दिया था |
"श्रद्धा ..." मैं नहीं जानता कि मैं शुरुआत कैसे करना चाहता था ...
"... ... ..." श्रद्धा सिर्फ खामोश थी |
"कैसी हो ?" जितनी बातें सोच के रखी थी सब धरी की धरी रह गयी |
"ठीक हूँ ..." जाने उसकी आवाज में अविश्वास सा क्यूँ भरा था | जैसे क्या वाकई मैं जो पूछ रहा हूँ, वो सुनना चाहता हूँ या नहीं |
"..." बातें मेरे पास ख़त्म हो चुकी थी या शायद लफ़्ज़ों की जरुरत नहीं थी , या साथ साथ कमाए ख़ामोशी के कुछ पल खर्च करने मुझे ज्यादा जरुरी लगे ?
"तुम कैसे हो ?" श्रद्धा की आवाज मौसम में घुलने लगी थी , एक डरी हुई पौष की अकेली बूँद जैसी |
"श्रद्धा ! मेरे पास दो एस एम् एस आये हैं | तुम सुनना चाहोगी ?" मैं हिम्मत जुटाने लगा |
"हूँ..." वो अभी भी आशंकित थी , क्या मैं उससे इस तरह बात नहीं करता था कभी, खुद से भी सवाल चल रहे थे |
"अगर तुम किसी से प्यार करते हो तो उसे आज़ाद उड़ने दो ...
अगर वो तुम्हारे पास आता है, तो वो तुम्हारा है ...
अगर तुम्हारे पास नहीं आता, तो वो कभी तुम्हारा था ही नहीं ..."
"..."
"लेकिन श्रद्धा उसी दोस्त ने मुझे दूसरा एस एम् एस भी किया है ..."
"..."
"जब किसी क्षण तुम किसी को छोड़ देने की सोचते हो, बस एक बार , एक कारण तलाश लो कि तुमने इतनी देर तक उसे क्यों पकड़ा हुआ था |"
"..."
"मैं आज भी कारण ढूंढ रहा हूँ , श्रद्धा |"
"मणिभ..."उसकी आवाज हल्की सी कांपी, "मैं तुमसे कोई वादा नहीं कर सकती | तुम जानते हो हम दोनों का परिवार ... हम लोग किस माहौल में ...?"
"श्रद्धा ... मैं तुमसे कोई वादा नहीं चाहता , हाँ ... मैं तुमसे ये वादा करना चाहता हूँ कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ |"
"मणिभ ... " अब आवाज के कांपने का डर शायद उसे नहीं रह गया था |
"हाँ ... "
"मैं ... मैं तुम्हें बहुत याद करती हूँ "
"मैं भी ..."
"वैसे, तुम्हारे लिए जन्मदिन का उपहार अभी भी मेरे पास रखा है | मुझे लगा था कि मैं तुम्हें कभी नहीं दे पाऊँगी ... जानते हो... क्या है ? मैं नहीं बताऊँगी... अंदाजा लगाओ |"
अंदाजा लगाना ज्यादा मुश्किल नहीं था , "कोई डायरी ?"
"नहीं, ये कोई ऐसी वैसी डायरी नहीं | वो पांच लाइन की डायरी है, वो जिसपे संगीत वाली भाषा लिखी जाती है | तुम्हारे विओलिन के लिए ..."
मैं मुस्कुराया , मैं ये भी जानता था , बस जान बूझ कर पूरा अंदाजा सही नहीं लगाया |
"...मैं ... तुम्हे खोना नहीं चाहती मणिभ " मैंने आसमान की ओर देखा | कोहरे की चादर हल्की पड़ गयी थी | सूरज धुंधला सा टिमटिमाने लगा था | पेंटिंग पूरी हो गयी थी |
श्रद्धा से बात करके मैं काफी खुश हूँ | अलग और मैं चुपचाप वापस चल रहे हैं | मैं उम्मीद कर रहा हूँ कि अलग कुछ तो पूछे , लेकिन वो चुपचाप चलता जा रहा है |
"हे अलग ... शुक्रिया दोस्त " मैं तर्जनी और अंगूठे को समकोण पर रखकर अलग की ओर इशारा भी करता हूँ , लेकिन वो मेरी ओर ध्यान नहीं देता |
हॉस्टल में से गालियों की आवाजें आने लगी थी | चेहरे कमरों से बाहर दिखने लगे थे | रोहित अभी भी जिम कर रहा था |
"हे रोहित ... "
रोहित जिम करता रहा |
"मर जाएगा साले , कपडे पहन ले " मैं चिल्लाया |
वो एक नजर मुड़कर मेरी ओर देखकर हँसता है , या मुस्कुराता है और फिर से हांफकर वजन उठाने लगता है |
सामने के कमरे में लड़के अभी भी पढ़ रहे थे , "अबे पाइरेट्स ऑफ़ कैरेबियन का तीसरा भाग केदार छात्रावास में आ गया है , ला नहीं रहे ?" मैं सबके बीच में खड़ा होकर घोषणा जैसी करता हूँ |
सारे लोग वापस किताबों की तरफ झुक गए हैं , उनका स्वघोषित प्रमुख मुझे जवाब देता है , "ओ भाई मणिभ ! पढ़ ले भाई ... २० से प्रायोगिक शुरू हैं |"
इस कमरे में भी कुछ नहीं बदला था | मैं अपने कमरे में घुसता हूँ |
"भाई.. याद कर तूने पेन्सिल मांगी थी शिवानी से, तब स्मृति ने तुझे दी थी |"
"ओये आकाश ! साले , पेन्सिल स्मृति से ही मांगी थी |"
"भाई , तेरी हिम्मत नहीं पड़ी थी |"
मेरे कमरे में भी कुछ नहीं बदला था, लेकिन मेरी दुनिया पूरी तरह से बदल गयी थी |
अचानक मेरे दिल में अपने हमदर्द के लिए दर्द उठा , और मैंने अलग से आखिरकार पूछ ही लिया |
"अलग ! अगर आज वो लड़की तुझे मिल जाए तो क्या तू उससे कहेगा कि तू उससे प्यार करता है ?"
कमरे में यकायक सन्नाटा छा गया | अलग ?!? ... लड़की ?!? ... आकाश और रजत एक दूसरे की तरफ देख रहे थे |
"तुझे क्या लगता है, मैं किसी से प्यार कर सकता हूँ ? ... वैसे ... कौन सी लड़की ?!?" अलग फिर मुस्कुराने लगा | उसके बदलते रंग में मैं उलझ गया था | क्या वो सच बोल रहा था थोड़ी देर पहले या कि अब ?
"कल रात तू नींद में श्रद्धा का नाम ले रहा था | इसलिए मैंने आज ये सब ड्रामा किया |" अपनी तरफ की खिड़की से वो घाटी में बसे श्रीनगर को देख रहा था | बारिश का देवता |
"क्या ?!? " हैरान होने की बारी मेरी थी |
"क्या ?!?" आकाश और रजत की हैरानी की वजह दूसरी थी , "तू नींद में भी लड़की का नाम बड़बड़ाने लगा ?" और रजत हंसने लगा |
"हा हा .. "अलग हंस रहा था , "हाँ , वैसे चिंता की कोई बात नहीं है | फ्रायड ने कहा है कि जो बात हमारे अवचेतन मस्तिष्क में होती है , हम वही रात को बड़बड़ाते हैं | अब तेरी उससे बात हो चुकी है , तो अब ये बोझ तेरे अवचेतन मस्तिष्क से हट गया है |"
अलग मुस्कुरा रहा था | मुझे पता है कि फ्रायड ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा , मतलब ... मैं निश्चित नहीं हूँ | कहा भी हो सकता है , इसलिए इस बात का मैंने विरोध नहीं किया | कई बार मैं खुद फ्रायड के नाम का गलत इस्तेमाल करता हूँ |
क्षमा, मिस्टर सिगमंड फ्रायड |
टिप्पणियाँ
’BEAUTIFUL'
and.......
interesting.........
abhar.....
पसन्द आयी कहानी।
nice story neeraj......
clz yaad aa gaya.........:)
इस ब्लॉग पर आने से हिंदुत्व का विरोध करने वाले कट्टर मुसलमान और धर्मनिरपेक्ष { कायर} हिन्दू भी परहेज करे.
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