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संदेश

Doors must be answered

"You don't know the first thing." There was someone at the door, wearing cloak, holding something I could not see. "Well, that... because no one told me." I replied casually. This man seemed laughing, but only his jaw stretched ear to ear, and a hollow creaking sound came from his throat. Something glistened inside the cloak, must be his teeth, I reckon. "THAT DOES NOT MEAN YOU DON'T HAVE TO." "I never object, God forbid please keep your voice low, all I want to know is why I am." I, however painful it was to speak, spoke. He looked at me, well don't ask me if I am certain but it seemed, he looked at me. It was bit dark and under the cloak I can't make out if it is my wife or her cat. "I don't have a wife, I remember." I assured myself. "What?" "Nothing." I woke up from my dream sequence. "I want to know what is wrong with me. Why me?" "Oh! That, I do not know mys
हाल की पोस्ट

याद

डॉक्टर साहब गर्मियों की छुट्टियों में आते थे, नीचे शहर से। जैसे सभी लोग आते थे। और चले जाते थे, जब सब लोग चले जाते थे।  बस एक दिन और रहकर।  

महापुराण

(मैं जो कुछ लिख रहा हूँ, उसका कोई मतलब नहीं है | इन फैक्ट वह इतना बेमानी है कि वो क्यों लिखा है इसका कोई मानी नहीं | इस पर झगडा करने वाला भी उतना ही बेवकूफ है, जितना इस पर हँसने वाला या इसे लिखने वाला |) देव दानव संवाद बहुत जल्दी संवाद टेलीफिल्म्स के संवाद लेखकों की मंत्रणा से ही सुफलित होने लगा | अब ऐसे समय में कभी किसी को कुछ मिल भी जाता था तो गुड ओल्ड टाइम्स की तरह वे झगडा करके मामला निपटान नहीं करते, बल्कि चुपके से लेके फूट लिया करते थे | जब बहुत दिन तक कुछ हाप्पेनिंग नहीं हुआ तो देवराज को भारी चिंता हुई | कोई राक्षस घनघोर तपस्या करके, शिव को प्रसन्न करने के वास्ते, उनका सिंहासन नहीं डुला रहा | एक बात नारद ने भी कभी नोट नहीं की, कि राक्षस कोई हो, वरदान कोई हो, देने वाला कोई हो, देवराज का सिंहासन यकायक मेले में लगी ड्रेगन नाव जैसा आगे पीछे जाने लगता | अरे भाई, जिससे प्रॉब्लम हो उसे हिलाओ, क्या फ़िज़ूल में इधर उधर हाथ मारते हो | खैर, इस सब वजहों से मोनिका, रम्भा आदि आदि जोब्लेस होकर महज छुपनछुपाई खेलने जैसे कामों में सीमित रह गयी थी | अप्सराओं की नयी भर्तियाँ नहीं हो रही थी, जब क

जगदम्बा मटन शाप

ह र रोज सुबह छः बजे ही उसकी आँख खुल जाती । वह आँखों को मसलता, कांच के परे दुनिया देखकर वक़्त का अंदाजा लगता और जाने अनजाने यह उम्मीद भी करता कि वक़्त कुछ तो बदला हो, सात बजे हों, पांच बजे हों .. पर छः नहीं, लेकिन सिरहाने रखी घडी के कांटे उसकी दोनों आँखों के बीच चमकते रहते । वह डर जाता, एक ही वक़्त पर उठना बूढ़े होने की निशानी है । शायद वह बूढा हो रहा है, इस उम्र में ही । या शायद वह एक बुढ़ापा जी रहा है , जिसके बाद एक दूसरा बुढापा भी है । जमीन पर पाँव रखते हुए उसे बाबु की याद आती है । जब वह छोटा था तो हमेशा बिस्तर से उठने से पहले हाथ लगाकर जमीन को छूकर माथे पे लगाता । ऐसा वो किसी आदत से मजबूर होकर नहीं, पूरी आस्था से करता था । बाबू को देखकर , यह आदत उसके अन्दर भी धंस गयी थी । मन से किये हुए कुछ काम भी महज आदतें होती है । जब तक हमारे साथ होती हैं , हमें लगता ही नहीं कि यह एक आदत है । बस करते जाते हैं , बेवजह । जब वह दौर पीछे छूट जाता है तो पता चलता है कि यह भी कोई आदत थी । चलता हुआ समय आदमी को अपने बारे में कई ऐसे सच बताता है, जिसे वह रुके क्षण में कभी महसूसता भी नहीं । "मा

एक सिंपल सी रात

 (कुछ भी लिखकर उसे डायरी मान लेने में हर्ज ही क्या है , आपका मनोरंजन होने की गारंटी नहीं है , क्योंकि आपसे पैसा नहीं ले रहा ।) आ धी रात तक कंप्यूटर के सामने बैठकर कुछ पढ़ते रहना, पसंदीदा फिल्मों के पसंदीदा दृश्यों को देखकर किसी पात्र जैसा ही हो जाना, अँधेरे में उठकर पानी लेने के लिए जाते वक़्त महसूस करना कि कोई तुम्हारे साथ चल रहा है | फिर आहिस्ता से दबे पाँव खिड़की पर आकर तारों को देखना, अपना धुंधला प्रतिबिम्ब तारों की पृष्ठभूमि में, काँच को अपनी साँसों से आहिस्ता से छूना जैसे कोई अपना बहुत ही क़रीबी तुम्हें एक जन्म के बाद मिला हो | उन लम्हों को याद करना जो तुम्हारे सिवा किसी को पता ही न हो , कभी कभी खुद तुम्हें भी नहीं | रात के उन लम्हों में जब तुम बिलकुल अकेले हो, तुम अपने आप को देख सकते हो | तुम बहुत पहले ही हार चुके हो, अब कोई गुस्सा नहीं, किसी से कोई झगडा नहीं, नाराजगी भी भला क्या हो | मौत कितनी सुखद होती होगी | किसी से कोई पर्दा नहीं, कोई दूरी या नजदीकी नहीं | मैं मरने के बाद मोक्ष नहीं चाहता, पुनर्जन्म भी नहीं, मैं भूत बनना चाहता हूँ | चार साढ़े चार बजते

मोक्ष

इ न बीस सालों में वह अपनी बेटी से नहीं मिला था | वह नहीं चाहता था कि उसकी बेटी को पता चले कि उसका पिता कौन है | अपनी सारी हैवानियत को आज ताक पर रखकर वह अपनी बेटी को एक नजर देखना चाहता था | वह उसको क्या बताएगा कि वह कौन है, एकबारगी आंसुओं ने उसकी आँखों में घर बना लिया था | लेकिन वह कभी कमजोर नहीं पड़ा है, तो आज क्यूँ ? एक नादान लड़की जो महज पच्चीस बरस की होगी, भला उसकी बिसात क्या है ? क्या पूछ लेगी वह ? दुनिया की उसे समझ ही कितनी है ? और दिल ही दिल में वह इस बात की उम्मीद करता रहा कि वह वाकई में वैसा ही हो जैसा वो नहीं है | सलीन, कितना प्यारा नाम है, उसने सोचा | ऐसा नहीं है कि वह अपनी ही बेटी का नाम नहीं जानता था | बल्कि यह नाम उसे उसने ही दिया था, सलीन | लेकिन कभी इस बारे में उसने नहीं सोचा कि वह नाम इस कदर खूबसूरत हो सकता है | चीजें अपने आप में कितनी मिठास भरी हो सकती हैं, है न ? कोलोन डालते हुए उसने खुद को शीशे में देखा, वह पच्चीस का लग रहा था | उसे लग रहा था कि वह अपनी ही बेटी से छोटा हो गया है | दुनिया को अपने इशारों पर नचाने की कोशिश करने में उसने उम्र का एक बेहद जरुरी हिस्स

मुर्दा

जिंदगी एक अवसाद है | एक मन पर गहरा रखा हुआ दुःख, जो सिर्फ घाव करता जाता है | और जीना , जीना एक नश्तर है , डॉक्टर | ऐसा नहीं है, मेरी तरफ देखो , देखो मेरी तरफ | आँखें बंद मत करना | जीना , जीना है , जैसे मरना मरना | जब तक ये हो रहा है, इसे होने दो | इसे रोको मत | तो आप ऐसा क्यों नहीं समझ लेते कि अभी मौत हो रही है है , इसे भी होने दो | मुझे मत रोको | डॉक्टर , लोग कितने गरीब हैं, भूखे सो जाते हैं , भूखे मर जाते हैं | तुम्हें एक मेरी जान बचाने से क्या मिलेगा ? तुम जानना चाहते हो , मेरे दिल में उन लोगों के लिए कितनी हमदर्दी है ? जरा भी नहीं | मरने वाले को मैं खुद अपने हाथों से मार देना चाहता हूँ | जब कभी सामने सामने किसी को मरता हुआ देखता हूँ , तो बहुत आराम से उसकी मौत देखता हूँ | जैसे परदे पर कोई रूमानी सिनेमा चल रहा हो | मुझे मौत पसंद है , मरने की हद तक | फिर मैं क्यूँ डॉक्टर ! मुझे क्यों बचा रहे हो ? क्यूंकि , मैं खुद को बचा रहा हूँ , अपनी आत्मा का वो हिस्सा बचा रहा हूँ , जिसे मैंने खुद से कई साल पहले अलग कर लिया था | अपने बेटे को बचा रहा हूँ, जिसे मैं बचा नहीं पाया