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धुंध, सिगमंड फ्रायड और शाम का सूर्योदय :पहला भाग



वो खिड़की के पास खड़ा है | हमेशा की तरह सिगरेट उसकी उँगलियों के बीच तिल तिल जल रही है | गैलरी के दूसरे सिरे पर खड़ा मैं उसे गौर से देख रहा हूँ, और अलग खिड़की से बाहर | अलग, हाँ ये उसका वास्तविक नाम नहीं लेकिन यही नाम है जिससे उसे हर कोई जानता है नीलकंठ में | उसने थोडा और आगे बढ़कर खिड़की पर लगे कांच के दरवाजे खोल दिए | ठंडी हवा का झोंका अन्दर घुस आया | ये सिर्फ ठंडी हवा नहीं, हड्डियों को कंपा देने वाली दिसम्बर की बर्फीली शीत है | मेरे बदन में न चाहते हुए भी हलकी झुरझुरी दौड़ गयी, लेकिन अलग निश्चिन्त खड़ा था | सिगरेट का धुंआ उसे घेरे हुए था, जाने कितनी वीं सिगरेट थी | सर्दी की लहर से बचने के लिए उसने अपने आसपास धुंए की गर्म परत चढ़ा ली थी | सिगरेट पीने के मामले में उसका कोई तोड़ नहीं है | लेकिन आज वो पी कम रहा था , आसपास धुंआ ज्यादा फैला रहा था | उसकी उँगलियाँ उठती हैं, और फिर धीरे धीरे कुछ देर बाद नीचे गिर जाती हैं , अलग और उसकी सिगरेट दोनों धुंआ उगलने लगते हैं |

मैं उसे काफी देर से देख रहा हूँ | मैं शाम की चाय के लिए तीसरे तल पर बने कहवाघर में आया , उसे अकेले खड़ा देखकर रुक गया | उसका अकेला होना कोई ऐतिहासिक बात नहीं है , बल्कि हम दोनों अपना अकेलापन काफी बांटते हैं | आज भी कोई ख़ास बात नहीं, लोगों को छुप छुप कर देखना मेरा वक़्त काटने का सबसे बढ़िया तरीका है | वैसे ये दिल बहलाव मुझे इतना पसंद है कि मुझे जगाना पड़ता है बाकी काम करने के लिए | तो मैं उसे देख रहा हूँ ... लेकिन आखिर वो सोच क्या रहा है | वैसे वो सोचता क्या रहता है | उसके बारे में महाविद्यालय में सबसे ज्यादा मुझे ही पता होगा | उसके घर में उसका एक छोटा भाई और दो छोटी बहनें हैं | बस ये औरों से अतिरिक्त जानकारी मेरे पास है | तो क्या वो अपने घरवालों को याद करता होगा ? हममें से कुछ लड़के ही खुलेआम ये स्वीकार करने को तैयार होते हैं कि वे अपने घरवालों को याद करते है | बल्कि ये एक तरह का बिनबोला अनुबंध सा है कि जो अपने घरवालों को याद करते हैं हम उनका मजाक उड़ायेंगे | मेरा घमंड मुझे मेरे घरवालों को याद नहीं करने देता | लव स्टोरी में ओलिवर बेर्रेट चतुर्थ के अपने पिता से जो सम्बन्ध थे , मुझे लगता है कि वैसे ही मेरे भी अपने पिता से हैं | माँ की जरूर कभी कभी बहुत याद आती है ... अलग भी शायद अपनी माँ को याद कर रहा होगा | छात्रावास एक ऐसी जगह है , जहाँ रहने वाले दूसरे गृह के प्राणी लगते हैं , ऐसा लगता है जैसे मानवीय रिश्तों की उनकी जिंदगी में कुछ ख़ास जगह नहीं है | इसलिए अलग की कोई माँ भी होगी और वो उन्हें याद भी कर रहा होगा , ये सोचना जरूर एक साहस भरा कदम है | सबसे ज्यादा जिस विषय पर पूरा नीलकंठ एकमत है वो है , लड़की | दिन में पचास बार मैं खुद श्रद्धा को याद करता हूँ , लाईट जलाता हूँ तो अँधेरा कमरा याद आता है जिसमे पहली बार मैंने उसके हाथों को छुआ था, किसी सस्ते शैम्पू की महक उसके बालों से आ रही थी, और वो नजरें झुकाए खड़ी थी | अफ़सोस होता कि मैं कुछ और क्यों नहीं कर पाया , दीवार पे सर टेक देता हूँ | जगजीत सिंह गा रहे हैं 'उस दरीचे में भी अब कोई नहीं ...' तो क्या अलग लड़की के बारे में सोच रहा है ?

"ओय मणिभ ! इधर आ देख !"
मैं चुपचाप चला गया | दिल के किसी कोने में मुझे इस बात का बेहद घमंड सा है कि मैं बहुत किताबें वगैरह पढता हूँ , और मैंने फ्रायड को पढ़ा है | मुझे कुछ ऐसा भी मुगालता है कि चेहरे को देखकर मैं आदमी के दिमाग में क्या चल रहा है , समझ जाता हूँ | मैं उसकी तरफ देखता हूँ , उसे अजीब न लगे इसलिए खिड़की से बाहर देखता हूँ |
"यार ! ये खिड़की तो बंद कर , तुझे ठण्ड नहीं लग रही है क्या ?" मेरे कहने पे उसने आगे बढ़कर खिड़की बंद कर दी | मेरे सवाल के जवाब में हमेशा की तरह मुस्कुरा दिया | "देख ! वो बादल ! श्रीनगर में बारिश हो रही है, मगर यहाँ नहीं |" उसने ऊँगली श्रीनगर की दिशा में उठा दी | "यहाँ हम उनके लिए भगवान् हैं , बादलों से ऊपर , बारिश के देवता |" मैं जानता था वो कुछ सोच रहा था और मेरे आते ही बात उसने बादलों की तरफ मोड़ दी हैं और अब वो  बात को भुलाने छुपाने की कोशिश करेगा | मुझे इन क्षणों में हस्तक्षेप करना बुरा लगता है | कभी- कभी मुझे वक़्त के इन टुकड़ों पर भी गुस्सा आता है | ये पल इंसान को अपने साथ लेकर जाते हैं , और इंसान भी सच को भूलकर इन्हीं पलों के साथ जीने लगता है | लेकिन सच तो सच होता हैं न , इंसान जब सच से रूबरू होता है तो वो असल जिंदगी में वापस आ जाता है | उस वक़्त ये पल अपना मुंह छिपाते फिरते हैं | अक्सर उसी वक़्त मैं वक़्त के साथ दखल करता हूँ | ये सच है मुझे ये अजीब इत्तेफाक कभी ज्यादा ही अजीब लगता है | फिर सोचता हूँ शायद भगवान ने मुझे इसी काम के लिए तैयार किया है कि मैं दूसरों को देखूं , उनके व्यक्तित्व का विश्लेषण करूँ , उनके सवालों और जवाबों की दुनिया को समझूँ |

"क्या सोच रहा है तू ?" अलग सिगरेट का धुंआ मेरे मुंह पर छोड़ता है | मैं जैसे सोते से जगा , उसके बारे में सोचते सोचते मैं काफी दूर किसी और पल में आ गया हूँ |

  

टिप्पणियाँ

सहसा उचट जाता है कथानक का पर्दा जब कोई कहता है कि क्या सोच रहा है।
आज क्रमश: ज्यादा ही खल गया। करेंगे इंतज़ार, कर लो विश्लेषण तब तक:)
Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…
मेरे ब्लॉग का अनुसरण करने के लिए हार्दिक धन्यवाद! सम्वाद क़ायम रखें।

कहानी काफ़ी रोचक है...... अन्त के लिए जिज्ञासा जगाती हुई.
सञ्जय झा ने कहा…
k r a m a s h a h........bakai khatak
gai........

sadar.
पहले पूरा पढ़ लें फिर कुछ कहेंगे. वैसे एक और कहानी आपकी अधूरी पड़ी है उसे कब पूरी करेंगे?
Arvind Mishra ने कहा…
धारावाहिक कहानियों को पढने में एक हिचक होती है की अगर क्रम टूट गया तो -=परिवेश और पात्र के चेहरे दिखने लगे हैं !
शिवा ने कहा…
काफ़ी रोचक कहानी ...... अन्त के लिए जिज्ञासा जगाती हुई.
Udan Tashtari ने कहा…
आगे इन्तजार करते हैं.
Patali-The-Village ने कहा…
कहानी काफ़ी रोचक है| धन्यवाद|
अज ही सारी कडियाँ पढी। कथानक शैली और शिल्प कमाल का है। अगली कडी का इन्तजार। धन्यवाद।

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