वो खिड़की के पास खड़ा है | हमेशा की तरह सिगरेट उसकी उँगलियों के बीच तिल तिल जल रही है | गैलरी के दूसरे सिरे पर खड़ा मैं उसे गौर से देख रहा हूँ, और अलग खिड़की से बाहर | अलग, हाँ ये उसका वास्तविक नाम नहीं लेकिन यही नाम है जिससे उसे हर कोई जानता है नीलकंठ में | उसने थोडा और आगे बढ़कर खिड़की पर लगे कांच के दरवाजे खोल दिए | ठंडी हवा का झोंका अन्दर घुस आया | ये सिर्फ ठंडी हवा नहीं, हड्डियों को कंपा देने वाली दिसम्बर की बर्फीली शीत है | मेरे बदन में न चाहते हुए भी हलकी झुरझुरी दौड़ गयी, लेकिन अलग निश्चिन्त खड़ा था | सिगरेट का धुंआ उसे घेरे हुए था, जाने कितनी वीं सिगरेट थी | सर्दी की लहर से बचने के लिए उसने अपने आसपास धुंए की गर्म परत चढ़ा ली थी | सिगरेट पीने के मामले में उसका कोई तोड़ नहीं है | लेकिन आज वो पी कम रहा था , आसपास धुंआ ज्यादा फैला रहा था | उसकी उँगलियाँ उठती हैं, और फिर धीरे धीरे कुछ देर बाद नीचे गिर जाती हैं , अलग और उसकी सिगरेट दोनों धुंआ उगलने लगते हैं |
मैं उसे काफी देर से देख रहा हूँ | मैं शाम की चाय के लिए तीसरे तल पर बने कहवाघर में आया , उसे अकेले खड़ा देखकर रुक गया | उसका अकेला होना कोई ऐतिहासिक बात नहीं है , बल्कि हम दोनों अपना अकेलापन काफी बांटते हैं | आज भी कोई ख़ास बात नहीं, लोगों को छुप छुप कर देखना मेरा वक़्त काटने का सबसे बढ़िया तरीका है | वैसे ये दिल बहलाव मुझे इतना पसंद है कि मुझे जगाना पड़ता है बाकी काम करने के लिए | तो मैं उसे देख रहा हूँ ... लेकिन आखिर वो सोच क्या रहा है | वैसे वो सोचता क्या रहता है | उसके बारे में महाविद्यालय में सबसे ज्यादा मुझे ही पता होगा | उसके घर में उसका एक छोटा भाई और दो छोटी बहनें हैं | बस ये औरों से अतिरिक्त जानकारी मेरे पास है | तो क्या वो अपने घरवालों को याद करता होगा ? हममें से कुछ लड़के ही खुलेआम ये स्वीकार करने को तैयार होते हैं कि वे अपने घरवालों को याद करते है | बल्कि ये एक तरह का बिनबोला अनुबंध सा है कि जो अपने घरवालों को याद करते हैं हम उनका मजाक उड़ायेंगे | मेरा घमंड मुझे मेरे घरवालों को याद नहीं करने देता | लव स्टोरी में ओलिवर बेर्रेट चतुर्थ के अपने पिता से जो सम्बन्ध थे , मुझे लगता है कि वैसे ही मेरे भी अपने पिता से हैं | माँ की जरूर कभी कभी बहुत याद आती है ... अलग भी शायद अपनी माँ को याद कर रहा होगा | छात्रावास एक ऐसी जगह है , जहाँ रहने वाले दूसरे गृह के प्राणी लगते हैं , ऐसा लगता है जैसे मानवीय रिश्तों की उनकी जिंदगी में कुछ ख़ास जगह नहीं है | इसलिए अलग की कोई माँ भी होगी और वो उन्हें याद भी कर रहा होगा , ये सोचना जरूर एक साहस भरा कदम है | सबसे ज्यादा जिस विषय पर पूरा नीलकंठ एकमत है वो है , लड़की | दिन में पचास बार मैं खुद श्रद्धा को याद करता हूँ , लाईट जलाता हूँ तो अँधेरा कमरा याद आता है जिसमे पहली बार मैंने उसके हाथों को छुआ था, किसी सस्ते शैम्पू की महक उसके बालों से आ रही थी, और वो नजरें झुकाए खड़ी थी | अफ़सोस होता कि मैं कुछ और क्यों नहीं कर पाया , दीवार पे सर टेक देता हूँ | जगजीत सिंह गा रहे हैं 'उस दरीचे में भी अब कोई नहीं ...' तो क्या अलग लड़की के बारे में सोच रहा है ?
"ओय मणिभ ! इधर आ देख !"
मैं चुपचाप चला गया | दिल के किसी कोने में मुझे इस बात का बेहद घमंड सा है कि मैं बहुत किताबें वगैरह पढता हूँ , और मैंने फ्रायड को पढ़ा है | मुझे कुछ ऐसा भी मुगालता है कि चेहरे को देखकर मैं आदमी के दिमाग में क्या चल रहा है , समझ जाता हूँ | मैं उसकी तरफ देखता हूँ , उसे अजीब न लगे इसलिए खिड़की से बाहर देखता हूँ |
"यार ! ये खिड़की तो बंद कर , तुझे ठण्ड नहीं लग रही है क्या ?" मेरे कहने पे उसने आगे बढ़कर खिड़की बंद कर दी | मेरे सवाल के जवाब में हमेशा की तरह मुस्कुरा दिया | "देख ! वो बादल ! श्रीनगर में बारिश हो रही है, मगर यहाँ नहीं |" उसने ऊँगली श्रीनगर की दिशा में उठा दी | "यहाँ हम उनके लिए भगवान् हैं , बादलों से ऊपर , बारिश के देवता |" मैं जानता था वो कुछ सोच रहा था और मेरे आते ही बात उसने बादलों की तरफ मोड़ दी हैं और अब वो बात को भुलाने छुपाने की कोशिश करेगा | मुझे इन क्षणों में हस्तक्षेप करना बुरा लगता है | कभी- कभी मुझे वक़्त के इन टुकड़ों पर भी गुस्सा आता है | ये पल इंसान को अपने साथ लेकर जाते हैं , और इंसान भी सच को भूलकर इन्हीं पलों के साथ जीने लगता है | लेकिन सच तो सच होता हैं न , इंसान जब सच से रूबरू होता है तो वो असल जिंदगी में वापस आ जाता है | उस वक़्त ये पल अपना मुंह छिपाते फिरते हैं | अक्सर उसी वक़्त मैं वक़्त के साथ दखल करता हूँ | ये सच है मुझे ये अजीब इत्तेफाक कभी ज्यादा ही अजीब लगता है | फिर सोचता हूँ शायद भगवान ने मुझे इसी काम के लिए तैयार किया है कि मैं दूसरों को देखूं , उनके व्यक्तित्व का विश्लेषण करूँ , उनके सवालों और जवाबों की दुनिया को समझूँ |
"क्या सोच रहा है तू ?" अलग सिगरेट का धुंआ मेरे मुंह पर छोड़ता है | मैं जैसे सोते से जगा , उसके बारे में सोचते सोचते मैं काफी दूर किसी और पल में आ गया हूँ |
टिप्पणियाँ
कहानी काफ़ी रोचक है...... अन्त के लिए जिज्ञासा जगाती हुई.
gai........
sadar.